Book Title: Geet Vitrag prabandh
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गीतवीतरागप्रबन्धः
[४] वत्यन्ते पुष्कलाख्ये ललितकुमुदसत्खेटसंज्ञे पुरे ऽभूद् भूमीशो वनजङ्घो विमलसुचरितः सर्वसौन्दर्यवर्यः । जाता तत्रैव कन्या गुणमणिनिकरा पुण्डरीकिण्यभिख्ये चक्रेशस्यात्मजा सा सुरवरवनिता श्रीमतीति प्रवित्ता ।।१ शशधरसितसौधे निद्रिता सा निशायां दिविजपटहरावं श्रूयमाणा शुभाङ्गी। अपरिमितगमूळ ज्ञातपूर्वप्रपश्चा व्यलपदमितदुःखा पण्डिताभिख्ययामा ॥२
चन्दनलिप्तसुवर्णशरीरसुधौतवसनधरधीरं मन्दरशिखरनिभामलमणियुतसन्नुतमकुटमुदारम् । कथमिह लप्स्ये दिविजवरं मानिनि मन्मथकेलिपरम् ॥ १॥ इन्दुरविद्वयनिभमणिकुण्डलमण्डितगण्डयुगेशं
चन्दिरदलसमनिटिलविराजितसुन्दरतिलकसुकेशम् । कथमिह लप्स्ये दिविजवरं मानिनि मन्मथकेलिपरम् ।। २ ।।
१) प्रवित्ता=प्रसिद्धा । २) अमा = सह। ३) A रामक्रियारागे । यतिताळे। B रागकैतारगौळ ।, M रागवसन्त
गुर्जरि; S रावक्रियारागे । ४) चन्दिरचन्द्र ।
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