Book Title: Geet Vitrag prabandh
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 51
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गीतवीतरागप्रबन्धः [४] वत्यन्ते पुष्कलाख्ये ललितकुमुदसत्खेटसंज्ञे पुरे ऽभूद् भूमीशो वनजङ्घो विमलसुचरितः सर्वसौन्दर्यवर्यः । जाता तत्रैव कन्या गुणमणिनिकरा पुण्डरीकिण्यभिख्ये चक्रेशस्यात्मजा सा सुरवरवनिता श्रीमतीति प्रवित्ता ।।१ शशधरसितसौधे निद्रिता सा निशायां दिविजपटहरावं श्रूयमाणा शुभाङ्गी। अपरिमितगमूळ ज्ञातपूर्वप्रपश्चा व्यलपदमितदुःखा पण्डिताभिख्ययामा ॥२ चन्दनलिप्तसुवर्णशरीरसुधौतवसनधरधीरं मन्दरशिखरनिभामलमणियुतसन्नुतमकुटमुदारम् । कथमिह लप्स्ये दिविजवरं मानिनि मन्मथकेलिपरम् ॥ १॥ इन्दुरविद्वयनिभमणिकुण्डलमण्डितगण्डयुगेशं चन्दिरदलसमनिटिलविराजितसुन्दरतिलकसुकेशम् । कथमिह लप्स्ये दिविजवरं मानिनि मन्मथकेलिपरम् ।। २ ।। १) प्रवित्ता=प्रसिद्धा । २) अमा = सह। ३) A रामक्रियारागे । यतिताळे। B रागकैतारगौळ ।, M रागवसन्त गुर्जरि; S रावक्रियारागे । ४) चन्दिरचन्द्र । For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119