Book Title: Geet Vitrag prabandh
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 54
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पञ्चमः प्रबन्ध: तयार्पितं पट्टकमादधाना सखीष्टकार्यानयनात्तचित्ता । उत्तुङ्गसौधोत्पलखेटकाख्ये प्रापन्महापूत जिनालयं सा ॥ २ श्रीवनजङ्घो नरनाथपुत्रो जिनालयं प्राप तु वन्दनार्थम् । तत्पट्टकं वीक्ष्य मुमोह पश्चात्तत्पट्टकार्थ समुवोचदित्थम् ।। ३ श्रीप्रभनामविमानसुभास्वरदेश विभागविलासं दीप्रकनीलपिनद्धमदङ्गणमेदुरभूमिविभासम् । बेहि व्यलिखदिह का हि विकास स्मरति मनो मम विहितविरासम् ॥ १ ॥ ध्रुवपदम् श्रीप्रभपति निकटस्थमनोहरनारीरूपमुदारं सुप्रभकिसलयकल्पमहीरुहवीथीनिवहविहारम् । ब्रूहि व्यलिखदिह का हि विकास स्मरति मनो मम विहितविरासम् ।। २ ।। सरसिजकुवलयकुसुमविराजितकेलिसरोवरतीर मरकतमणिचयविरचितरुचिमयडोलागेहसुवारम् । ब्रूहि व्यलिख दिह का हि विकास स्मरति मनो मम विहितविरासम् ॥ ३ ॥ २) A धन्वांशि रागे; B राग-शंकराभरण; M राग-मुखरि; s धन्वाश्रि रागे। ३) विरासं=प्रकाशयुक्तम् । ४) सुवारं सुसमूहम् । For Private And Personal Use Only

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