Book Title: Geet Vitrag prabandh
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 52
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुर्थः प्रबन्धः शारदशशधरवदखिलह्लादनकारकवदनसुकान्तं भूरिमनोहरनर्मकथनरसस्यन्दिलपनवरशान्तम् । कथमिह लप्स्ये दिविजवरं मानिनि मन्मथकेलिपरम् ।। ३ ।। केलिरणन्मणिगणघृणिरञ्जितहारकदम्बकभानं बालदिवाकरकाशविभूषणशोभितवत्सधरेनम् । कथमिह लप्स्ये दिविजवरं मानिनि मन्मथकेलिपरम् ॥ ४ ॥ विविधमणिरचितभूषणभूषितकोमलतरभुजदण्ड सुविशदसदमलसरसगुणनिकरनिधिनिक्षेपकरण्डम् । कथमिह लप्स्ये दिविजवरं मानिनि मन्मथकेलिपरम् ॥ ५॥ स्फुरदन्त्यकाञ्चनविरचितरसनाविवलितमध्यशरीरं वरवज्रसार शिरीषसुकोमलवामजङ्घोरुयुगेरम् । कथमिह लप्स्ये दिविजवरं मानिनि मन्मथकेलिपरम् ॥ ६ ॥ मृदुलसरलतलचटनविलोलितविमलकमलसमपादं सदमलचेलसदश्चलचश्चलमखुलकेलिविनोदम् । कथमिह लप्स्ये दिविजवरं मानिनि मन्मथकेलिपरम् ।। *७ ।। योजनपरिमितदिक्सुरभीकृतदेहभृदभिनवकामं व्याजरहितनवरसभरितामरभोगपयोनिधिसोमम् । ५) वत्सधर + इनम् । For Private And Personal Use Only

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