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गीतवीतरागप्रबन्धः
मण्डपपल्लवतोरणमण्डलशोभितकृत गिरिजालं खण्डितवनिताकृतक कलह भावमण्डितविमुखविशालम् । ब्रूहि व्यलिखदिह का हि विकास स्मरति मनो मम विहितविरासम् ॥ *४ ॥
सुरगिरितमणिरुचिगणयवनिकाव्यवहित दम्पतिरूपं सरसजनितकोपयुवतिचरणह तिगिरितटगुल्मकलापम् । ब्रूहि व्यखिदिह का हि विकास स्मरति मनो मम विहितविरासम् ॥ ५ ॥
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मामभिरञ्जितुमानत मस्तकराजितवनितालीलं " कोमलतरचरणौ मम नन्दितुमानमदबलाखेलम् । ब्रूहि व्यलिखदिह का हि विकास स्मरति मनो मम विहितविरासम् ॥ *६ ॥
अच्युत कल्पसुरेन्द्र कृतादर लब्ध सन्मानविस्तारं अर्चितमेरुनगादि जिनगृह वन्दनगमनविचारम् । ब्रूहि व्य लिखदिह का हि विकास स्मरति मनो मम विहितविरासम् ॥ *७ ॥
५) A लीलां ।
६ ) AM खेलाम् ।
उरसि मम विहितचरण सुलान्छनत्रिरहितसकलविनोदं चरणसरोजे नतमकुटं मां त्यक्त्वा सरससुमोदम् । ब्रूहि व्यलिखदिह का हि विकास स्मरति मनो मम विहितविरासम् ॥ ८ ॥
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