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कारण शोध-विषय की अपनी सीमा है ।
पं० श्री दलसुखभाई मालवणिया ने ही इस विषय पर कार्य करने की प्रेरणा दी, समय-समय पर सूचन एवं मार्गदर्शन दिया जिसके लिए में अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। प्रो० सागरमल जैन निर्देशक, पार्श्वनाथ विद्याश्रम, वाराणसी का सदैव आभारी रहूँगा जिनके निर्देशन में प्रस्तुत शोधप्रबन्ध का कार्य सम्पन्न हुआ । जिन्होंने हर समय महत्त्वपूर्ण निर्देशन, वात्सल्यभरी प्रेरणा तथा दुरूह एवं शुष्क विषय को समझने एवं प्रस्तुत करने की क्षमता प्रदान की तथा अहिंदीभाषी होने के कारण भाषाकीय दोषों से भरे लेखन को परिमार्जित कर प्रस्तुत करने योग्य बनाया । अतः मैं सदा ही उनका ऋणी रहूँगा।
विभागाध्यक्ष एवं सह-निर्देशक प्रो० रेवतीरमण पाण्डेय के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ जिन्होंने मेरे अध्ययन कार्य में सदैव सहयोग प्रदान किया और इस शोधकार्य को यथाशीघ्र पूर्ण करने की सदा प्रेरणा दी है । उनका स्नेह और सहयोग मेरा सम्बल रहा है।
अपने सहयोगियों एवं मित्रों में डॉ० अशोककुमार सिंह, डॉ० मुकुलराज मेहता, डॉ० रज्जनकुमार, डॉ. सुनीताजी, डॉ० धनंजय आदि का भी आभारी हूँ। जिनके सहयोग ने मेरे शोधकार्य को पूर्ण करने में गति प्रदान की है।
पार्श्वनाथ विद्याश्रम के पुस्तकालयाधिकारी श्री ओमप्रकाश सिंह का आभारी हूँ, जिन्होंने शोधकार्य में यथायोग्य सहयोग प्रदान किया है।
शोधकार्य के टंकणकर्ता श्री जयशंकर पाण्डेय, एवं शोधकार्य में प्रत्यक्ष या परोक्ष सहयोग देनेवाले सभी का आभारी हूँ ।
स्वर्गीय पिता श्री बाबुलाल शाह तथा पूज्यनीया माताश्री मुक्ताबेन के उपकार, प्रेरणा एवं आशीर्वादों का ही फल यह शोधप्रबन्ध है । अतः मैं उनको भी हृदयपूर्वक अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ ।
विद्याश्रम परिवार का आभारी रहूँगा तथा मातृसदृशा गुरु माता की भावनाओं ने शोधकार्य को संबल दिया अतः मैं उनका कृतज्ञ हूँ ।
जितेन्द्र बाबुलाल शाह
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