Book Title: Dvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Author(s): Jitendra B Shah
Publisher: Shrutratnakar Ahmedabad

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Page 12
________________ समस्या से सम्बन्धित है। आचार्य मल्लवादी का यह वैशिष्ट्य है कि उन्होंने प्रथम अर में आनुभविक आधारों पर स्थित दार्शनिक मतों, जिन्हें परम्परागत में अज्ञानवादी कहा जाता है, का प्रस्तुतीकरण किया है और फिर दूसरे अर में तर्क-बुद्धि के आधार पर उन अनुभववादी मान्यताओं की समीक्षा प्रस्तुत की है। प्रस्तुत शोधप्रबन्ध का तृतीय अध्याय सृष्टि के कारण की समस्या से सम्बन्धित है । इस अध्याय में आचार्य मल्लवादी के द्वारा प्रस्तुत अपने युग की जगत्-वैचित्रय के कारण सम्बन्धों, कारणवादों यथा-काल, स्वभाव, नियति, भाव, (चेतना), यद्रच्छा एव कर्म आदि का प्रस्तुतीकरण और उसकी समीक्षा प्रस्तुत की गई है। चतुर्थ अध्याय मुख्य रूप से न्याय दर्शन की ईश्वर सम्बन्धी अवधारणा के प्रस्तुतीकरण के साथ-साथ उसकी समीक्षा के रूप में ईश्वर की सृष्टिकर्तृत्व की समालोचना प्रस्तुत करता है। शोधप्रबन्ध का पञ्चम अध्याय सत् के स्वरूप की समस्या से सम्बन्धित है । उसमें मुख्य रूप से नित्यवाद, अनित्यवाद और नित्यानित्यवाद की सत् सम्बन्धी अवधारणाओं का प्रस्तुतीकरण एवं समीक्षा की गई है । साथ ही इसमें परमसत्ता के चित-अचित् तथा एक-अनेक होने के प्रश्न को भी उठाया गया है । ज्ञातव्य है कि मल्लवादी जहाँ एक ओर सत् सम्बन्धी विभिन्न अवधारणाओं को प्रस्तुत करते हैं वहीं दूसरी और उसकी समीक्षा करते हुए उनके दोषों को भी स्पष्ट कर देते हैं । शोधप्रबन्ध का षष्ठम् अध्याय द्रव्य, गुण, पर्याय और उसके पारस्परिक सम्बन्ध तथा स्वरूप की समस्या को प्रस्तुत करता है । इस अध्याय का विवेच्य बिन्दु द्रव्य, गुण और पर्याय की पारस्परिक भिन्नता और अभिन्नता को लेकर है। सप्तम अध्याय में क्रियावाद एवं अक्रियावाद के विषय में चर्चा करते हुए आचार्य मल्लवादी द्वारा प्रस्तुत अवधारणाओं को और उसकी समीक्षा को प्रस्तुत किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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