Book Title: Dvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Author(s): Jitendra B Shah
Publisher: Shrutratnakar Ahmedabad

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Page 10
________________ प्राक्कथन भारतीय-दर्शन परम्परा में श्रमण-परम्परा का महत्त्वपूर्ण योगदान है । वर्तमान में श्रमण-परम्परा के जो दर्शन उपलब्ध हैं उनमें प्रमुख रूप से चार्वाक, बौद्ध और जैनदर्शनों का महत्त्वपूर्ण स्थान है । श्रमण-परम्परा का यह वैशिष्ट्य रहा है कि उसने दर्शन को आस्थाओं से मुक्त होकर तार्किक आधार पर प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है । अतः अनेक नये विचारों का आविष्कार हुआ । भारतीय दार्शनिक चिन्तन की जो विविध धाराएँ अस्तित्व में आई उनके बीच समन्वय स्थापित करने का काम जैनदर्शन ने अपने नयवाद के माध्यम से किया । नयवाद जैनदर्शन का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है । नयों का उल्लेख प्राचीन आगमों में भी पाया जाता है। नयवाद के द्वारा जैन दार्शनिकों ने स्यादवाद एवं अनेकान्तवाद के सिद्धान्त का विवेचन किया है । नयवाद के चिन्तन में क्रमिक विकास हुआ है । इस विकासक्रम में नयचक्र का महत्त्वपूर्ण योगदान है। नयचक्र में नयों का ही विवेचन है किन्तु प्रचलित परम्परा से भिन्न शैली में ही नयों का विवेचन प्राप्त होता है अतः नयचक्र का अपना वैशिष्ट्य है । ___ परम्परागत शैली में सात नयों का विवेचन किया जाता है, वहीं नयचक्र में बारह नयों का विवेचन प्राप्त होता है । ये बारह नय विधि एवं नियम ऐसे दो शब्दों के आधार पर बनाएँ हैं । इन्हीं बारह नयों में तत्कालीन समस्त भारतीय दर्शन के सिद्धान्तों को समाहित किया गया है । साथ ही प्रत्येक सिद्धान्त की उसके विरोधी सिद्धान्त के द्वारा समालोचना करवाई है । क्रमशः एक-एक दार्शनिक अवधारणा का स्थापन किया गया है और उस-उस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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