Book Title: Dravyanuyoga Part 4
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 685
________________ पृष्ठ नं. १५४७ वास पृष्ठ नं. शब्द वामणसंठाणणाम (कम्म) १५०२ विज्जुदंत (अंतरदीवय) २१७ वामलोकवाइ १३७०,१३७१ विज्जुमुह (अंतरदीवय) २१७ वामावत्त १८३४,१८४२ | विज्जुयाइत्ता १८७५.१८७६ वायमंडलिया १८७८ | विजोयावइत्ता १८५१,१८५२ वायय १०२६ |विणास (पाणवहपज्जवणाम) १३५३ वायसपरिमंडल (पावसुय) ९०८ |विणिच्छिय २५९१ वायुभूई (गणधर) ६२६,६२८,६२९,६३३,६३५ |विण्णाण (अवायनाम) ८१५ वालय विण्णू (जीवस्थिकायनाम) वालुओदगसमाणभाव १४६६ | वितत (आउज्जसद्दभेय) २५५३ वालुओदय १४६६ | विततपक्खी २१५ वालुयराई १४६४ | विदलकड १८७१ वालुयापुढवी १८०,४०२ | विदेह (जणवय) २१९ वावत्ति (अबंभपज्जवणाम) १४०० | विदेह (इब्भजाइ) वावन्नसोय २११७ विद्देसगरहणिज्ज (मुसावायपज्जवणाम) १३६९ वावहारियनय २४९८,२४९९ विन्नय (पुत्तपगार) १८८३ वावि (पसत्थसरीरलक्खण) १४१३,१८९० विष्पजहणसेणियापरिकम्म ८७० वाविद्धसोय २११७ विप्परिणामणोवक्कम वावी १३०,२८२ | विप्पलाव (वयणविकप्प) २६०१ विभम (अबंभपज्जवणाम) १४०० वासधरपव्वय १३० विभेल (सन्निवेसनाम) १९१४ वासपुहुत्त २२२५-२२२७ विभत्तिभाव १४८१ वासित्ता १८७५,१८७६ विभाग (पज्जवलक्षण) वासुदेव (इड्ढिपत्तारिय) ४,२१९ विभागनिष्फण्ण (दव्वपमाण) १०५३,१०५७ वासुदेवगंडिया विभंगणाण ९४०,९४१,९४३,९४७,१५१९ वासुदेवत्त विभंगणाणपज्जव वाह (धान्यमानप्रमाणभेद) १०५४ विभंगणाणपरिणाम १२१ वाही (व्याधि) २५९३ विभंगणाणसागारपासणया विउलमई ९२५,९७४,९७५ विभंगणाणसागारोवओग ७७४,७७५ विकहा २५९४,२६०१ विभंगणाणी ८०,८६,१२२,१६१,३६१,५२१, विकहाणुजोग (पावसुयपसंग) ९१० ९५६,९७६,९७९,१५५७ विक्खेव (अदिण्णादाणपज्जबणाम) १३८१ विभंगनाण २३०३,२४३३ विक्खंभसूई ५६६,५६९,५७१ |विभंगनाणणिवत्ती ९४४ विगयजीवकलेवर २१६ विभंगनाणपज्जव ३८,१४१,९८०,९८१ विगयमिस्सिया (अपज्जत्तियासच्चामोसाभासा) ७१२ | विभंगना (णा)णलद्धी ९६४,९८३,१०२६ विगलिंदिय १७८,२७९,३५८,५१६,५१९,५२१,७२५, . | विभंगनाणसागारोवउत्त १३३०,१६५३,१६५५,१६७०,१६७३,२३३३,२३५१ विभंगनाणी १२३,९७१,९७७,१३४२,१३४४,१५१५, विगलिंदियजाइणाम (कम्म) १५०५ १५१७,१६०८,२०३०,२०३२,२०३३,२३५२ विगुब्वण विमण (अबंभपज्जवणाम) १४०० विग्गह १३० विमाणोववन्नग/वण्णग १५३६,१९१८ विग्गह (अबंभपज्जवणाम) १४०० विमुह (आगासस्थिकायनाम) ३९ विग्गहगइसमावन्नग २४८,२९२-२९४,५७२ वियई १९७५ विग्गहगइसमावन्नय २१२४ वियच्चा २५८५ विघाय (अबंभपज्जवणाम) १४०० वियडजोणिय ३७४ विजयचरिय (सूत्रभेद) | वियडाजोणी ३७३ विज्जाणुजोग (पावसुयपसंग) वियतपक्खी २१४ विज्जाणुप्पवाय (पूर्व) ८७२,८७३ | वियत्थि ९१७ विज्जाहर २१९,१८८३ | वियद्द (आगासत्थिकायनाम) ७८५ २११६ ७८१ | P-90 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814