Book Title: Dravyanuyoga Part 4
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan
View full book text
________________
शब्द
झाणसमाहिजुत्त झामथंडिल्ल झिझिरपलंब झिमिय झुसिर झंझा ठवणा (दोस) ठवणाकुल ठवणासच्चा ठवणावस्सय ठविया ठविया आरोवणा ठाणट्ठिइए ठाण-समवाय ठाण-समवायधर ठाण-समवायांगधर ठाणाइयाए ठाणाइणं निसेह ठिती (ई) डहर डंडग (दण्डय) डिंबर ढक ण (न)क्खत्त
पृष्ठ नं. पृष्ठ नं. | शब्द
पृष्ठ नं. २/४६५ | ण (न)हमल १/३५१,३५७,३६२, | णाणसंपण्ण (या) २/३४,३६४ १/४९८,६९८,७३९ ३६८,३७४,३७९,३८६,३९२,३९९ णाणसंपन्नया
१/१३४ १/५८४ | ण (न)हवीणिय
१/४६१ णाणायार
१/५७,१२४ १/१६६,५३० | ण (न)हसिहा
१/३६९,३८१, | णाणाराहणा १/५४,५५; २/१५५,१५६ ३८७,३९२,४०० | णाणावरण
२/४१९ २/४६४ णहसिहापरिकम्म १/३५२,३९३ णाणिड्ढी
२/२३४ १/५६५ | णहसीहाए परिकम्म
णाणिंद
२/२२७ कारावण १/३६३,३६९,३७५ | णाणी
१/२०९ णागइ १/१७१ णाणुप्पण्णाणाणुकूल वय
१/५७ २/९२ | णा (ना)ण १/१७,४८,५३,६०,६१, | णाणोवघात
२/२०७ २/३५३ |६२,१०४,१२६,१२७,१४६,१८१,१९४,४३१ | | णातिमत्तपाण भोयणभोई १/३१७ २/३५४,३५५ णाण-अइक्कम २/९८,९९ | णातिवेल
१/१०८ २/३१० णाण-अइयार २/९८,९९ | णा(ना)तिसंयोग
१/१४० २/२५३ | णाण अणायार २/९८,९९ | णायगाईण
१/६७१ २/२३८ | णाण असंकिलेस
२/२८७ |णालिया
१/६४७,७३१ २/२२७ | णाण आसायणा
१/९८| | णालिएरपाणग
१/६४२ २/३१२ णाणगुणप्पमाण १/२०,२५ |णावपरिणाम
१/५०५ १/३०० णाणजुत्त १/११६,११७ णावा
१/५०५,५०६ '१/२२२ णाणट्ठया २/७७,३६१ णावागय
१/५१०,५१२ १/९९,१०५,१०६ |णाणपडिणीय
२/२६३ णावापुराण
१/७४८ १/७३१,७३२ णाणपण्णवणा
णावाविहार
१/५०५,५०९ णाण पायच्छित्त २/३५२ णावासंतरिम
१/५०६ १/१५३ णाण परिणिता
१/११७ |णासारोम १/३५४,३७०,३७६, १/६४,१०१,१०९, | | णाणपुरिस
२/२२७
३८८,३९५,४०२ १२३,१७८,१९४ णाणपुब्बगपच्चक्खाणकारी २/११७ णिक्कम्मदंसी
१/७५३; २/४५४ २/२२७ णाणफल १/१०३ णिक्खारग
१/५८५ २/४५३ | णाणबलिय १/२२५ | णिक्खित्त चरए
२/३०८ १/५८४ | णाणबुद्धा
| णिक्खित्त दोस.
१/५७५,५७८ णाणबोधी
१/५५ | णि (नि) गंथ १/११३,११४,१५६, १/५१५ णाणमट्ठा
१/१११ | १८८,२६४-२६९,२८५,२८६,२८७,२९२, १/५१९| णाणमूढा
१/५६ | ३०२,३१६,३१७,३२६,३२८,३२९,३३०,३३१, १/५१५,५१७,५१८ णाणमोह
१/५५ | ३३२,३३५,३६७-३७८,४०६,४१५,४३०, १/५२६ | णाणलोग (अ)
१/१७ | ४७९,४८०,४९१,५०४,५२६,५३६; णाणव
२/३२ | २/२३,२४,६२,६३,६४,७६,७७,७८,७९, १/२०,२६,३१ णाणवइक्कम
२/९८,९९ | |८०,८२,८३,८७,८८,८९,९०,९१,१०७,१४७, १/१७८,४४२ |णाणविणय
१/७६ | १५१,१५२,१५३,१७७,१७८,१८२,१८३,१८५, १/४२६ णाणविराहणा
२/१५७ | १८६,१८७,१८८,१९२,२१२,२३८,२३९,२४५, १/४२७ णाणविसोही
२/२०७ | २४६,२५१,२५३,२५४,२५६,२५७,२५८,२५९, १/४२०,४२५,५५५ णाणसम्म
१/३३
२६०,२६१,२६२,२६३,२६४,२६५,२७६,२७७, २/३९४ णामसच्चा
१/५१३ २८८,२८९,३०८,३०९,३१०,३११,३८९,४१०,४७२ १/२७८,२७९,२८० णाणसंका
१/१११ | णिग्गंथ धम्माइयार विसोहि सुत्त २/१०७ १/३८१,४००णाणसंकिलेस
२/२८७ |णिग्गंथमुत्ति
२/६४
णगरथेर णगिणा णग्गोहपवाल णडखइया णपुंसगलिंगसद्दा णपुंसगवयण णपुंसगवयू णभदेव णमी वेदेही ण (न)यप्पमाण ण (न) रग णव अगुत्ति णवगुत्ति णवणीय णवबंभचेर णहछेदणय णह परिकम्म
Jain Education International
P-152 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814