Book Title: Dravyanuyoga Part 4
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 770
________________ पृष्ठ नं. १/८७ शब्द पृष्ठ नं. | शब्द पृष्ठ नं. | शब्द सफला राइओ १/४३ | समणोवासगधम्म २/१२४ सम्मत्त १/६०,१२५,१३६, सबलत्त १/४४५ समणोवासगप्पगारा २/१२१ १९५,७५१, २/१२३ सबलदोस २/२१०-२११ समणोवासग भवण णिदाणकरण २/१८८ | सम्मत्त अइयारा २/१२३ सबीयग १/२२९ समणोवासगाण तिविहा भावणा २/१३८ सम्मत्तदंसिण १/२२९; २/४५०,४५५ सब्भावपच्चक्खाण १/१३४; २/१२० समणोवासिया २/१५४ | सम्मत्तदंसी २/४५५ सभावणा १/२२८; २/६१ समपायपुत्ता २/३११ सम्मत्तधिया वीरियपाउरण सभावसंपन्न १/५४१ समभावसाहग १/४३३ सम्मत्त परक्कम १/१३३ सभंड २/१२९-१३० समभिरूढ (नय) १/३१ सम्मत्त सच्चा समचउरंस १/३२० समय १/२१९ सम्मत्तसरूव २/१२३ समण १/४,१०३,१३७,१४९,१५२, | समयंत १/१२३ सम्मदिट्ठी १/२२९ १५३,१५५,१६०,१६३,१६९,१७९,१८०, समायारी २/६८,६९,७१,७३,७४ | सम्मदंसण १/१२७,१३५,१३७ १८७,१९६,२३९,२४८,३०१,३२८,३२९,३३६, | समायारीए पवत्तणं २/६९ | सम्मइंसणपज्जव १/६० ४१५,४३५,४३६,४४१,४७७,४९३,४९९, | समारंभ १/१७५,२०९,२१०,२८४ सम्मत्तसद्दहणा १/१३६ ५०३,५०६,५०७,५२८,४२९,५३८,५६०,६००, समाहि (ही) (धी) १/८६,१०८,२१५, | सम्मामिच्छदंसण १/१२७ ६१४,६१५,६१६,६१७,६१८,६२९,६३०, २२१,२२५; २/६४ सम्मावाई १/१६८,१७१ ६४२,६४७,६५५,६५९,६६०,६६४,६८५, | समाहि (ही) कामी २/४६४,४६५ सयण १/४५३ ६८७,७००,७०९,७११,७१४,७२०,७२१, | समाहिजुत्त २/४१८ सयणकुल १/५४७ ७४०,७४३;२/२३,५२,६२,६३,६७,६८, | समाहिजोग १/१०१,१३०,३२८,३३६ सयणासण २/४९ १३२,१५३,१५४,२२६,२६२,२७८,२९०, | समाहिट्ठाण सयमेव उग्गहं अणुगिम्हणया १/३०९ ३०८,३०९,३१०,३११,३७८,४१५,४२६, | समाहितिंदिय १/३७ सयंभू (समुद्र) १/७,१६०,६२० ४३०,४३३,४३९,४६५ | समाहि पडिमा २/३१६ सरऊ १/५०४ समणधम्म १/६०; २/४५ | समाहिपत्त २/४६,४७ सरडुय १/५८४ समण-णिग्गंथ २/२३८,२३९,२४५, | समाहिमाहिय सरण १/४५५ २४९,२५९,२६२,२६३,४१०,४११,४१२ | समाहिविहाण १/१०८ सर-दह-तलायपरिसोसणया २/१२८ समण-माहण २/४६३ | समिइ(ती) १/१०५,१२६,२२२, सरल १/२०२ समणभवण णिदाण करण २/१९० ४८७,७४८ सराइभत्त समणभूय २/१३४ | समिइ (ति)जोग १/४२३-४२५ | सराइभोयण १/४४६ समणव्वद १/२३९ | समित १/१८७; २/६२,६६,४५४,४५७ सराग संजम २/१२ समणसरीर परिट्ठवण १/७३९ | समत्ताराहणा १/२२२ सरिसगस्स संवास आदाण २/२६५ समणसंघ २/२२६ | समिद्धी १/२२२ सरीर १/४७,१५०,१५२, समणस्स सुद्ध आहार दाण फल २/१३२ |समियदंसण १/४५३ १५६,७३९ समणी २/१५४,२२६ समियपावा १/२२६ | सरीरपच्चक्खाण १/१३४,१३५; २/१९९ समणुण्णा २/२२९ | समियाए धम्मे १/३२ | सरीरपरिमण्डण १/३३२ समणुण्णं-असमणुण्णाणववहारा २/२६५ । |समियाचार १/१७९ | सरीर विओसग्ग २/४०६ समणुद्देसिय १/६१४,६८७,७१३ समुक्कस २/२७,५० | सरीरवुच्छेयणट्ठाय १/६२५ समणोवगरण ओग्गहविहि १/३०७ | समुट्ठाण सुय २/२५३ | सरीरसक्कारपोसह २/१३१ समणोवस्सय २/१२९,१३० समुदाणकिरिया १/१६४ | सरीरसंपन्ना १/११८ समणोवमा २/३६-४० | समुयाणचरिया २/४८ सरीर संपया २/२३४,२३५ समणोवासग (य) २/१२१,१२३-१२७, | समोछिन्न किरिए अपडिवाइ २/४०५ | सरीसिव १/२७६ १२९,१३०,१३१,१३२, | समोसरण १/१६८ | सलोमचम्म १/७०२ १३८,१३९,१४३,१४५,१४६,१५०,१५४, | सम्म | सल्ल १८८,१९०,३६३,४५२ | सम्म किरियावाय १/१६९,१७०। सल्लइपलंब १/५८४ १/८ Jain Education International For PHP-175sonal use Only www.jainelibrary.org

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