Book Title: Dravyanuyoga Part 4
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan
View full book text
________________
वेयण
१/८६
शब्द पृष्ठ नं. | शब्द पृष्ठ नं. | शब्द
पृष्ठ नं. विराहगाणं संजमस्स -
विहारचरिया २/४८ | वेदवी
१/४४२ अपद्धंसो २/१७६,१७७ विहारजोग्ग काल
२/७६ | वेमाणिय
१/५० विराहणी १/५१८ | विहारभूमि १/६८३,६८४,७३०,७३१, वेयकाल
१/४५६ विराहय (ग) २/७२ | ७३६,७४६; २/७५,७८,८८,१४९,२५६,
१/६२४ विराहिय २/१९८
२५७,२९१ वेयण अहियासयणया विरूद्धरज्ज १/५०२ | वीमंसा २/३५१,४३५ वेयणा
१/१९१ विरूद्ध रज्जाइक्कमण २/१२६ वीयण
१/४३२ | वेयणिज्ज १/१४६; २/१२०,४१९ विवग्घाणि १/४१८,६८६ वीयडा
१/५१४ | वेयन्त
१/१२३ विवण्ण
वीयराग
२/४४१,४४३,४४४,४४६, | वेयमाराहय विण्णकरण १/७००,७०१ ४४८,४६५,४६९,४७१ | वेयरणी
२/४२५ विवरीय पायच्छित्त १/२९६ | वीयरागभाव २/११९,४६९-४७२
२/३२ विवाग विजय २/४०३ | वीयरागया
१/१३४; २/४७२ | वेयावच्च १/१३४,२५७,३०६,६२४; विवाद १/१६७; २/५० वीयरागया फल
२/४७२
२/७९,३५०,३८५-३९० विवित्तलयण
वीयराग संजम २/१२ | वेयावच्च फल
२/३८९ विवित्तवास-वसहिसमिति १/३०९ | वीरत्थुई
१/४ | वेयावडिय विवित्तसयणासणसेवणया १/१३४,१३५, | वीर्याचार
२/४१५-४७२ | वेरज्ज
१/५०२ ३२६,४२३; २/३१३,३१५ वीरस्स परक्कम
२/४५६-४५८ | वेरोट्टा (देवी)
१/११ विविहविहा पव्वज्जा
वेलंबग १/४२५ वेलंधरोववाय
२/२५३ विवेगपडिमा
२/३१६ वीरासण २/३१०,३११,३२५ वेवइ
१/१६६,५३० विवेगभासी १/५२१ वीरासणियाए २/३१२ वेसमणोववाय
२/२५३ विवेगारिह २/३५२ वीरिय २/४१५,४४९ | वेससामंतं
१/३३४ विवेयकम्म १/४७६ वीरियायार
१/५३ वेसाली विसण्णमेसी १/४३३ वीरियसंपण्ण
२/२७८ | वेसिय
१/५३६,५३७ विसभक्खण २/१९४,१९५,१९९ | वीसुंभेज्जा
२/७७ वेसियकुल
१/५५३ विसममग्ग १/४९६ वुग्गह वक्कंत २/२९१ | वेसिया करंडग
१/१०२ विसमसीला २/१९७ वुग्गाहित १/१३० वेसियायण
१/४२३ विसय २/४१६ दुट्ठिकाय
२/८२ वेहाणस बालमरण
२/१९८ विसयपमाय २/२०६ वेआवच्च करणया
वेहाणसमरण
२/१९४,१९९ विसवाणिज्ज २/१२८ | वेइयववसाय
१/४८ वेहिम
१/४६३ विसासो १/२२३ | वेइया १/७३४ | वोक्कसालियकुल
१/५५३ विसोही
वेउब्बिइ
१/२२४ वोदाण १/३५,१०४,१०७,१३३; २/४७२ विसिट्ठदिट्ठी १/२२२ | वेउन्विय परदारगमण २/१२६ वोदाणफल
१/१०४ विसील १/८२ | वेढिम १/४६३ | वोसट्ठकाइयाए
२/३१२ विसुज्झमाणय १/२६ वेणइया १/१८२ वोसट्टकाय
२/४८ विसुद्धी
१/२२२ | वेणुदेव (गरूड़) १/७,३२०
१/२०२ विसोहिठाण १/१०३ | वेणुदंड १/२७७ वंक दिट्ठी
१/२०२ विसंभोइय २/२६३,२६४ वेणुफल
१/३३८ वंकदंसणा
१/२०२ विसंभोगकरण
२/२६४ वेणुसुइ १/७३२,७३६ वंकपण्णा
१/११८ विसंभोगकरण कारण २/२६२ वेतालिय मग्ग २/४५७ वंकसमायार
१/४४८ विहवधूया १/६७२ | वेत्तदंड १/२७७ बंका
१/११८ विहार अजोग्ग काल
| वेद २/३४,३५ | वंजणजाय
२/२५४ विहारकरण विहि निसेह २/७६ | वेदण अहियासणया
१/१३५ | वंजण (ज्ञानाचार) १/५७,१११
२/७७
वंक
Jain Education International
For PP=173ersonal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814