Book Title: Dravya Gun Paryayno Ras Dravyanuyog Paramarsh Part 07
Author(s): Yashovijay
Publisher: Shreyaskar Andheri Gujarati Jain Sangh

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Page 348
________________ २६६२ • परिशिष्ट-७ . દ્રવ્યાનુયોગપરામર્શકર્ણિકાગત સંદર્ભગ્રંથ પૃષ્ઠ | દ્રવ્યાનુયોગપરામર્શકર્ણિકાગત સંદર્ભગ્રંથ પૃષ્ઠ (३५९) निरालम्बोपनिषद् ................... १६८ | (३८३) न्यायसङ्ग्रह ........ ७३२, १३३१, २२८६ (३६०) निरुक्तविवृत्ति .............. ..... १११० | (३८४) न्यायसार......................... १९४७ (३६१) निरुक्तविवृत्तिटिप्पन .............. १९८७ | (३८५) न्यायसिद्धान्तमञ्जरी ....... १९४७,१९८४ (३६२) निशीथचूर्णि ...... ३२, ३३, ४०, १२८८, (३८६) न्यायसिद्धान्तमञ्जरीप्रकाश ....... १६७९ १२८९, १४८२, २२८१, (३८७) न्यायसिद्धान्तमुक्तावली .... १०९, १३२०, २४१३, २४८२, २५९६ १६८० (३६३) निशीथभाष्य ..... ३३, ३९, ६९२, १३८०, (३८८) न्यायसूत्र ..... ७२८, ८३६, १२८९, २३४४ २२८०, २३६३, २५६३ (३८९) न्यायसूत्रवात्स्यायनभाष्य.... ८३८, १९४६ (३६४) निशीथसूत्र (प्रकल्प) ................... ३३ (३९०) न्यायसूत्रविवरण .................... ८३६ (३६५) नीतिमञ्जरी ......................... ८१ (३९१) न्यायालङ्कार (प्रमाणपरिभाषाविवरण) . १९४३ (३६६) न्यायकणिका ............... ३९०,११८६ | (३९२) न्यायालोकवृत्ति (भानुमती)...८४६, १८१५ (३६७) न्यायकन्दली .. ...................... ३०१ / (३९३) न्यायावतार ............... १७२१,१९४२ (३६८) न्यायकुमुदचन्द्र ..... ३९२, १७२१, २२३६ (३९४) न्यायावतारवृत्ति ............. ६०६,१९४२ (३६९) न्यायकुसुमाञ्जलि ................ १९४७ | (३९५) न्यायावतारसूत्रवार्तिक ..... ३७८, ११५१, (३७०) न्यायकुसुमाञ्जलिप्रकाश ......... १८८७ १७६१, १९८१ (३७१) न्यायकुसुमाञ्जलिस्वोपज्ञवृत्ति ..... २०३२ (३९६) न्यायावतारसूत्रवार्तिकवृत्ति. १७५६,१७८६ (३७२) न्यायखण्डखाद्य .. १०६४, १०६६, ११२६, | (३९७) पञ्चकल्पभाष्य ...... ३१, ३२, ५०, २१०, १८६३, १९५५, २०१४, २५७८ ९३३, १००१, १७९६, २३४६, (३७३) न्यायतात्पर्यपरिशुद्धि ................ ३०१ २३५७, २३६३, २४५५, २५६० (३७४) न्यायदीपिका .......... १०७,६०७,१९४६ (३९८) पञ्चकल्पभाष्यचूर्णि..... ३१, ३३, १०७०, (३७५) न्यायप्रवेशकवृत्तिपञ्जिका ..........६८८ १२७३, १४९७ न्यायप्रवेशकशास्त्रवृत्ति देखिए शिष्यहिता | (३९९) पञ्चदशी ..............१६५, १६६, ४५०, (३७६) न्यायबिन्दु ......... ६८७, १९४९, २३४७ | ११७३, ११९४ (३७७) न्यायबिन्दुवृत्ति ................... १९४९ | पञ्चमकर्मग्रन्थवृत्ति देखिए शतकवृत्ति (३७८) न्यायभूषण ................ ११२७,१५३३ (४००) पञ्चलिङ्गिप्रकरण .. १७५५, १७६६, १९०५ (३७९) न्यायमञ्जरी .... ३०१,५६९,१७५५,१९४७ | (४०१) पञ्चवस्तुक ..... ७२, १५६, ८३९, २०१०, न्यायरत्नाकर देखिए २२८५, २३०५, २३४३, २४०८, २४५२ ___ मीमांसाश्लोकवार्तिकविवरण | (४०२) पञ्चवस्तुकवृत्ति ................... २५०१ (३८०) न्यायवार्त्तिक .............. १६७९, १९४६ (४०३) पञ्चसङ्ग्रह (दिगम्बरीय प्राचीन) ..... २३२६, (३८१) न्यायविनिश्चय ..... ११३९,१६५८,१८०८ २५८९ (३८२) न्यायविनिश्चयविवरण.... ११८७, १८६८, | (४०४) पञ्चसूत्र .......... १०७२, १८३२, १९५७, १९२२, १९४५ २१८६, २२७०, २३७४

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