Book Title: Dravya Gun Paryayno Ras Dravyanuyog Paramarsh Part 07
Author(s): Yashovijay
Publisher: Shreyaskar Andheri Gujarati Jain Sangh

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Page 427
________________ • દ્રવ્યાનુયોગપરામર્શકર્ણિકાગત સાક્ષીપાઠ लोकोत्तरदृष्टान्तेनाऽपि तत्र..... १२०७ १४७३ ( अ. स. परि. ३ / ६०, पृ. २८१/२८२) लोगववहारपरो ववहारो.... (वि. आ.भा. ३५८९) १०७०, १०८२ लोगविभागाऽभावे पडिघाया.... (वि. आ.भा. १८५३ ) .... १४७४ लोगस्स त्थि विवक्खो... (वि. आ.भा. १८५१) लोगागासपदेसे एक्केक्के.... (गो.सा. जी. का. ५८९ ) लोगाणुभावजणियं जोइसचक्कं.... ( ज्यो.क. ६) लोगोवयारविणए (भ.सू.२५/७/८०२/पृ.९२२). लोयऽग्गमत्थयमणी, सिद्धो.... (सं.र.शा. ५२१८ ) लोयायासपदेसे....(बृ.द्र. स. २२) लोहं स्वक्रिययाऽभ्येति.... (अ.सा. १८/११३) व वा यथा..... (अ.को. ३/४/८ ) .... वंजणपज्जायस्स उ पुरिसो (स. त. १ / ३४ ) वइसाहारणदंसणपज्जवे... (उत्त. २९/५७) वक्तुस्त्वेकान्ततो...(त.सू. पूर्वकारिका - २९) वचनात्मिका प्रवृत्तिः सर्वत्रौ .... ( .... (षो. १०/६) वज्जेमि त्ति परिणओ..... (ओ.नि. ६० ) .. वञ्चनं करणानां तद्विरक्तः..... (अ.सा. ५/३१) वण्ण रस पंच, गंधा दो..... (बृ.द्र. स. ७) वण्णपज्जवेहिं, गंधपज्जवेहिं... (भ.सू.१४/४/५१३, जीवा - प्रतिपत्ति ३/१ (ओ.नि.भा.गा० २ ). परिशिष्ट-१२ પૃષ્ઠ वयं तु भिन्नाऽभिन्नत्वम्...... १५५१ १६२४ ८३९ ७७ २४४६ २०२६ २७४१ ७८८ દ્રવ્યાનુયોગપરામર્શકર્ણિકાગત સાક્ષીપાઠ પૃષ્ઠ वरकोउय-मंगलोवयार.... (भ.सू.११/११/४३०/पृ. ५४७). ८३९ वरमद्य कपोतः, श्वा.... (का. सू. १/२) वर्तमानमात्रपर्यायग्राही ऋजुसूत्रः.. (प्र.मी. २/२/६) वर्त्तते = अनवच्छिन्नत्वेन.... (उत्त. २८ /१० दी.) १४८३ वर्त्तना = उत्पत्तिः स्थितिः.... (त.सू. ५/२२ ७८० • भा. पृ. ३४९) वर्त्तना परिणामः क्रिया.. (त.सू. ५/२२) १५००,१५४३,१६३० वर्त्तनादयः तद्वतां.... ( आ.नि.वृ. १०१८ हा.वृ.पृ.३०९) १४९३ वर्त्तनादिरूपः कालो यद्.... (वि. आ.भा. २०२७ मल. वृ.) १५४९,१५७९ २०४५ १५५९ १५९३ १५४३ वर्त्तनाद्याश्च पर्याया... (काललोकप्रकाश सर्ग - २८ / १४ ). १४९३ १२४ वर्त्तनालक्षणः कालः सा... (पा.च.म. ५/११६). २१२५ | वर्त्तनालक्षणः कालः । स... (त. न्या. वि. पृ. ६) ४५ वर्त्तन्ते = भवन्ति भावाः... (उत्त. सू. ८ / १० वृ.). . २५३३ वर्त्तमानः पुनर्वर्त्तमानैक.... (का.लो.प्र. २८/१९८) २३८३ वर्त्तमानसामीप्ये वर्त्तमान.... (अ.सू. ३/३/१३१). २३३२ वर्धमानकभङ्गे च रुचकः ( मी. श्लो. १४८३ १६१५ ........... ७३८ अध्ययन स.गा. १ - पृ. ६६० ). २४५४ वयणगुणजणियसोमरूवे (ज्ञा.ध. १/१/२१) ................ १०५ वा. वनवाद - २१-२२ ) वलीपलितकायेऽपि कर्तव्यः.... ( ) ववगददोगंध- पंचरसट्ठपास.... (ष.ख. १५५२ पुस्तक-४/१-५-१/ध. पृ. ३१४ ) ववदेसा संठाणा संखा ( प.स. ४६ ) सू. ७८, ज. प्र.वक्ष.२/ सू. ३६) . २०५ ववहरणं ववहरए स तेण.... (वि. आ.भा. २२१२) . ७६९ २००८, २०२४ . १९२,६८५ वत्तणहेदू कालो, वत्तण..... (गो. सा. जी. का. ५६८ ) ... १५१२ वत्तणालक्खणो कालो.... ( उत्त. २८ / १०) १६९७ ववहारं रिउसुत्तं दुवियप्पं.... (न.च. १४, प्र.स्व.प्र.१८६) ... ८०८ वत्थु च्चिय दव्व..... (ध.स. ७१९) २२३१ ववहारणओ भासदि जीवो..... ( स. स. २७) वत्युं पज्जवनयस्स.... (वि.आ.भा. ३५८८) . ६७८ ववहारभासिदेण दु परदव्वं ..... ( स.सा. ३२४ ) ...... २०५२ वत्युं वसइ सहावे (वि.आ.भा. २२४२) १००८,१०५२ |वहारा मुत्ति अनुपचरिता..... (बृ.द्र. स.७/वृ.पृ.२३) २०२६ वत्थुणिमित्तं भावो जादो.... (गो.सा. जी. का. ६७२) १६३८ |ववहारा मुत्ति बंधादो (बृ.द्र. स. ७) वदिवददो तं दे.... (प्र. सा. १३९) वन्नपज्जवत्ति वर्णविशेषाः ..... (भ.सू.२ / १ / ११२ वृ.) .... ११३ वय - समणधम्म-संजम - वेयावच्चं ..... = १८६८ १५४८ २०२३ २०२१ १६२२ ववहारा सुह- दुक्खं पुग्गल ..... (बृ.द्र. स. ९) ववहारेण दु एदे जीवस्स..... ( स.सा. ५६ ) ववहारो पुण कालो.... (गो.सा. जी. का. ५७७). १५,५२८ ववहारो पुण तिविहो... (गो.सा. जी. का. ५७६) ववहारोऽभूदत्थो भूदत्थो १९८९ वश्येन्द्रियाः, सकलजीव १६१५ १०९० २४२९ २२३२ १७६५ १४८३ (स.सा. ११). (स. कौ. १/७७) (प्र.न. त. ७ / ९ ) वस्तु चेत् क्षणविध्वंसि..... (त्रि.श. पु. १/१/३७९) वस्तु यद् नष्टं तदेव.... (स.त. (शा.दी. १/१/५/पृ. १०६) वयं तु विस्रसापरिणामेन.... (त.सू. ५ / ९ सि.वृ.) | ...... १३०८ |वस्तु = पर्यायवद् द्रव्यम् वयछक्कमिंदियाणं च..... (आ.सू.प्रति. ११३७ २३४७ का. १/का. २२/ भा. ३ पृ. ४१२) १३००

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