Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library

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Page 220
________________ धमविधि ॥१०४॥ सच्छायविसालतरुवरत लम्मि । पिक्खइ य वणियमेगं, विच्छायं तालरुक्खं व ।। १०० ।। तं जपई सुरदत्तो, मित्त ! तुम कीस दीससि सचितो । किं कत्थवि नद्वषणो, परिभूओ विरहतत्तो वा ? ।। १०१ ।। तो तेण नीससित्ता, भणियं सो को विनत्थि भुवणम्मि । जो मित्त ! ममं तारइ, चिंता दुहदीहदहपडियं ॥ १०२ ॥ पयडिज्जइ तस्स पुरो, नियदुक्खं जेण होइ परिताणं । अन्नह पपमाणो, हासद्वाणं नरो होइ ॥ १०३ ॥ तो सत्थाहो तं पर, जंपइ मा मित्त ! एवमुलवसु । जं आवयरिद्धीओ, गरुयाणं चिय हवंति जओ ॥ १०४ ॥ चंदस्स खओ न हु तारयाण, रिद्धीवि तस्स न हु ताण । गरुयाण चडणपडणं, इयरा पडिया पुणो नि ।। १०५ ।। तो पभणइ सो वणिओ, मह चरियं मित्त ! सुणसु उवउत्तो । सोरीपुरनयरमिमं, नेमिजिणो जत्थ उष्पन्नो ।। १०६ ।। इत्थासि विमलसिट्टी, तप्पुत्तो हं धणंजओ नाम । बालत्तणंमि जाओ, सच्छंदो जूयवसणी य ॥ १०७ ॥ पिउणा सिणेहसारं, सिक्खविओ ताडिओ वि नो विरओ । रुसिऊण विदेसेसुं, भमिओ पवणुव्व सव्वत्थ ॥ १०८ ॥ जणओ वि अनतरण, वज्जिओ मह विओयसंतत्तो । बहुधणकोडिसमिद्धो, पत्तो का लेण पंचतं ।। १०९ ।। तो किंपि धणं सयणेहिं, विलसियं किंपि वाणिपुत्तेहिं । किंपि गयं राओले, एस अपतु त्ति भणिऊण ॥ ११० ॥ अहमवि भूयतो इव, भमिडं नाणाविहे देसेसु । निष्पुत्रो इह पत्तो, टिओ य नियजणयआवासे ।। १११ ॥ ता मित्त ! गेहमज्झे, अज्जवि फुडमत्थि कत्थवि निहाणं । सयणा विविंति एवं कोवि परं न मुणए ठाणं ।। ११२ ।। जो तं मह उवदंसइ, निमित्तमइजोइसेहिं तस्साहं । नियभाउणु व्व अद्धं नृणं विभजिय समप्पेमि ॥ ११३ ॥ अह आह सत्थवाहो, मित्त ! तुमं मा विसीयसु इहत्थे । तुह चिंतावाहिमिमं अहमवणिस्सामि विज्जु व्व ॥ ११४ ॥ तो भणइ सिट्टितणओ, घणंजओ भाय ! जइ तए एवं । विहियं ता तुह तुलो, प्रक णम् |||१०४ ॥

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