Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library

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Page 271
________________ अपक्कपि करिसणं एयं । सकुटुंबजीवभूयं, कह तिणमित्तं व तं लुणसि ॥ ७२५ ॥ तो भणइ बगो पुत्ता ?, किमिमेहिं कंगुकुदवाई हिं । गुडमंडयत्थमिह इ-क्खुगोहमे है वविस्सामि ॥७२६॥ पभणंति सुया एए, कणा भविस्सति थोवदिवसेहिं । ते गिण्डिय ववसु तुमं, जहारुई इक्खुगोहूमे ॥ ७२७ ॥ निप्पन्ना जाइ किसी, गोहूमुच्छ्सु संसओ ताय ? । बाले गए कडित्थे, नणु उयरठियस्स का आसा ॥ ७२८ ॥ एवं नियपुत्तेहि, वारिज्जतो वि सो बगो मूढो । तं कंगुकुंदववणं, लुणेइ ज तत्थ । सो सामी ? ॥ ७२९ ॥ लुणिऊण ताइ सस्साइ, सो बगो नियसुए अवगणतो । निम्मवइ गोलियाकी-लणत्य-मिव तं समं भूमि ॥ ७३० ॥ तत्तो य खिचतीरे, कुर्व एगं बगो खणावेइ । वंझापओहराउ व, तम्हाउ पओ न नीहरियं ॥ ७३१॥ तेण अनिश्चिन्नेणं, खणिओ पायालविवरपडिरूवो । सो कूवो कारविओ, नीहरिओ न उण पंको वि ॥ ७३२ ॥ तो तस्स | न संजाया, ते कंगृकुद्दवा न गोहमा। नो इक्खुणो य किं पुण, पच्छुत्तावं गओ एसो।। ७३३ ॥ ता नाह? तुमं थीधणसहमवलद्धं इम इय चयंतो । सिडिसुहं बंछतो, चुक्को दुण्डंपि झूरेसि ।। ७३४ ॥ जंपइ जंबूकुमरो, हसिऊण सिरिसमहसिरिकंते । किं हीणमई लुद्धो, अहं पि चिट्ठामि कागु व ॥ ७३५ । जह नम्मयाइ कूले, विझवणे आसि वणगओ एगो । जूहबई विज्ञायल-निवस्स जुवरायपडिरूवो ।। ७३६ ।। सच्छंद विहरंतो, सो विझे जुव्वणं अइक्कमइ । आउनईपारसम, कमेण पावड य वुढतं ॥ ७३७ ॥ तो निच्चलो न सका, काउं रुक्खेसु दंतघायाई । जाओ गिरि व्व गिम्हे, विमुक्कमयवारिनिज्झरणो॥ ७३८ । सो कनियारसल्लइ-पमुहदुमे नेव भंजइ जइ व्व । निच्चुचपएसेसुं, बीहइ बालु ब्व बच्चतो ॥ ७३९॥ दसणपडणाउ परिमिय-आहारो छहदुहेग गलियतणू । सो अद्विभरियभत्था-सरिच्छकाओ तया जाओ ॥ ७४०॥ अन्नदिणे सो पत्तो.

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