Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library

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Page 275
________________ 26 कारिणो तस्स । तण्हा न मणागं पि हु, उवसमई अग्गितिल्लं व ॥ ७८९ ॥ तत्तो जलासयं पइ, सो चलिओ जाव सलिलपाणकए । ताव वरागो पडिओ, तण्हंधो अडमग्गे वि ॥ ७९० ॥ सो निवडतो कस्सवि, रुक्खस्स तलंमि दिवजोगेण । पडि ओ सीयलछायाइ, अमयवावीसमाणाए ॥ ७९१ ॥ अह आसासिज्जतो, तरुमूले तीइ सीयछायाए । सो पावेइ मणागं, सुह-| वारितरंगिणिं निदं ॥ ७९२ ॥ मुमिम्मि वाविसरवर-कूवाईए जलासए सव्वे । सोसेइ सो मंत-प्पउत्तअग्गेयवाणु व ॥ M७९३ ॥ तहवि अविच्छिन्नाए, तण्हाए सो जलं गवेसंतो। पिक्खेइ अंधकूर्व, एगं पंकाउलजलिल्लं ॥ ७९४ ॥ तो दब्भमयं रज्जु, काउं कुसपूलयं निबंधित्ता। पक्खिवइ तम्हि कूवे, बोलेइ य तजले गडुले ॥ ७९५ ॥ अह पूलयमाकढिय, तग्गलिय. जलं लिहेइ जीहाए । तह विन तिप्पइ एसो, कहंपि दाघजरत्तु व्व ।। ७९६ ॥ ता भद्दे ? एस जिओ, सरिसो अंगारकारयनरस्स । सयलजलपाणतुल्ला, भोगा सुरवंतराईणं ॥ ७९७ ।। सुरसुक्खेहि न तितो, जो जीवो सो पिए ? कहमियाणिं । तिप्पइ नरभोगेहिं, कुसग्गठियजललवसमेहि ॥ ७९८ ॥ अह भगइ पउमसेणा, तइयपिया नाह ? इत्थ जीवाण। कम्मायत्तं सव्वं, ता विसए भुजम् अविग्धं ॥ ७९९ ॥ संति बहुदिटुंता, पवत्तगा वारगा य इत्थत्थे । जह नेउरपंडीए, गोमाउस्स वि कहा भणिया ॥ ८०० ॥ रायगिहाभिहनयरे, आसि पुरा देवदत्तनामेण । रिद्धो सुवन्नगारो, तस्स सुओ देवदिनो य॥ ८०१॥ अह दुग्गिल त्ति भजा, संजाया तस्स देवदिनस्स । बहुबुद्धिबलोवेया, सोहग्गमहानिही दक्खा ॥ ८०२ ॥ सा जलमजणहेडं, ससहीया अन्नया नई पत्ता । तिक्खकडक्खसरहिं, विधती तरुणजहियए ॥ ८०३ ॥ परिहियनिम्मलबसणा, कणयाभरणेहि भूसियसरीरा । नइतडमलंकरेई, सा जलदेवि व पञ्चक्खा ॥ ८०४ ॥ उन्नयपओहरजुर्ग, पव्वयदुग्गं व वम्महनि

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