Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library
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लिंगंति तया दिढ - मण्णवनइड व्व अन्नुन्नं ॥ ८५ ॥ वत्ताहि पेमसंग - भियाहि नवनवरएहि रमियाणं । तेसिं रइव्व निद्दा, पत्ता निसिपहरदुगसमए || ८५३ ॥ इत्तो य देवदत्तो वि कायचिंताकए समुट्ठेउ । पत्तो असोगवणियं पेक्खेई ताई सुत्ताई ।। ८५४ ॥ तो चिंतइ नियहियए, धी पावा मह बहू इमा एवं । पुरपुंसा सह सुरए. परिसंता निव्भरं सुयइ ॥ ८५५ ॥ तो तुं वासगि, सुत्तं पुतं विलोइउँ वलिओ । परपुरिस एव एस, त्ति निच्छिउँ चितर पुणो वि ।। ८५६ || आगरिसामि इमाए, सुण्हाए पायनेउरं सणियं । जह मन्नइ मह तणुओ, कल्ले कहियं असइमेयं ॥ ८५७ ॥ इय चोरो इव सनियं, आगरसिय चरणनेउरं तीसे । भवणंमि देवदत्तो, पहेण तेणं चिय पविट्ठो ||८५८ || पडिबुद्धा सुत्ता वि हु, उत्तारिज्जंतनेउरा सहसा । पाएण सभयमुत्ता, सुथोनिद्दाभयाउ व्व ॥ ८५९ ।। नाऊण सा वि ससुरेण, गिव्हियं चरणनेउरं मज्झ । उट्ठविय स्ववई तं, भयभीया भासए एवं ॥ ८६० || जासु तुम सिग्धं चिय, दिट्ठाई ससुरएण दुट्ठेण । कहवि अणत्थे पत्ते, मह साहिज्जे जइज्ज तु ॥ ८६१ ॥ इवउ इमं ति भणित्ता, भयभीओ सो जु( उ ) वागओ ठाणे । तो दुग्गिला वि गंतु, सुत्ता नियभत्तुणो पासे ॥ ८६२ ॥ गाढालिंगणपुत्रं, पडिवोहिय धीमई परं भणइ । पिययम ? ममेह धम्मो, ता एहि असोगणियाए । ८६३ ।। उट्ठि
पई व अज्जो, असोगणियाइ तीइ सह पत्तो । सा तत्थेव पत्ता, पइमालिंगिय उत्रवई व || ८६४ ॥ सो तक्खणेण तत्थवि, सुत्तो सरलासओ पई तस्स । अह सा वि कवडनिद्दा, धंधलिया उट्ठवेइ पिर्यं ॥ ८६५ ॥ तत्तो नडिव्व गोवियआगारा सापि पर्यंपे । कँत ! कुले तुह कोर्यं, आचारो सिट्ठजणबज्झो || ८६६ ॥ आलिंगिऊण तुममिह, एवं सुताइ पिक्खि तारण । मह चरणाउ इमाओं, आगरिसिय नेउरं गहियं ॥ ८६७ ॥ जुज्जइ न अन्नयावि हु, बहुया समुराण फरि

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