Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library

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Page 285
________________ सुहडेहि, तत्थ पविद्वेहि सत्थपाणीहिं । रे रे को सो चोरो, इय तिमि वि ताइ भणियाई ॥ ९४७ ॥ अह ते गामेयनरे, मुत्ता, माय व्व जपए धुत्ता । उद्दिसिय चोरपुरिसं, जं एसो मह पिययमु त्ति ॥ ९४८ ॥ पुणरवि कयंजली सा, भणेइ भो बंधवा ? पओसम्मि । गामंतरजताई, अम्हे इत्येव वसियाई ॥९४९ ॥ तो गामीणा मिलिउ, अन्नुन्न मंतिऊण जपति । चोरस्स गिहे परिस-महिलापत्तं न संभवइ ॥ ९५० ॥ वत्थालंकारधरा, मुत्ता लच्छि व असममुत्तीए । जस्स गिहि गिहिणीयं, सो चोरत्तेण किं जियइ ॥ ९५१॥ एगागीए सुच्चिय, चोरो संभवइ इय वियारित्ता । तं गिहिऊण मिठं, खिवंति मूलाइ8 तक्कालं ॥ ९५२ ॥ मूलाधिरोविओ सो, जं जं जंतं पहंमि पिक्खेइ । तं तं जंपइ दीणो, पाणीयं भाय ? पाययसु ॥ ९५३ ॥ तं चोरं निवभयओ, पाणीय नेव पायए कोवि । सव्वो वि कुणइ धर्म, सहियं पुण अप्परक्खाण ॥९५४ ॥ तेण य जिणदासाभिह-सड्ढो दिट्टो पहम्मि बच्चतो । नीरं पमग्गिओ तो, सो तं चोरं भणइ एवं ॥ ९५५ ॥ तुह तण्डमवणइस्से, नवरं तुममिह "नमोऽरिहंताण" । इय मंतं उग्योससु, जाव अहं आणयामि जलं ॥९५६॥ मिठो वि तमुग्धसिउं, नीरपिवासाइ तक्खणं लग्गो। निवपुरिसाणुनाए, नीरं आणेइ सड्ढो वि॥९५७॥ आणिज्जतं सलिलं, दटुं मिठो मणे समाससि। नवकारपर्य पढम, भणिरो पाणेहि मुक्को य ॥९५८ ॥ अह सो तह सीलेणं, रहिओ वि अकामनिज्जरावसओ । नवकारपभावाओ, संजाओ वंतरो देवो ॥ ९५९ ॥ सा पुंसली वि चलिया, तत्तो चोरेण तेण सह मग्गे । पावेइ नई एगं, दुत्तारं वारिपूरेण ॥ ९६० ।। तो चोरो तं असई, आह पिए ? एगया तुम नेउं । न खमो नईइ परओ, बहुवत्थाभरणभारिल्लं ॥९६१ ॥ ता वत्थाभरणाण, भारं पढम सिरंमि मह देसु । तं मुत्तुं परतीरे, पच्छा लीलाइ नेमि तुमं ॥ ९६२ ॥ जावागच्छामि अई, ताव

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