Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library
View full book text
________________
चिंतइ य जइ इमाओ, कहमवि कूवाउ नीहरिस्सामि । ता दिद्वदुहफलेहि, पज्जत्तं मज्झ भोगेहिं ॥ २८ ॥ तस्स य अणुकंपाए, देवी दासी य तम्मि कूवम्मि । निच्चं खिवंति फेलं, तीए सो जियइ सुणउ व्व ॥ २९॥ पाउसकाले जाए, पासायलेहि उत्तरंतेहिं । भरिओ तया स कुवो, पावेण व परिणामो ॥ १३३० ॥ मडयं व वाहिओ सो, निरंहसा तेण जलपवाहेण । वप्पस्स चा(वा)रियाएपरिखित्तो खाइयामझे ॥ ३१ ॥उल्लालिऊण तत्थ य, सो जलपूरेण फेणपिंड व्व । खित्तो खाइयतीरे, गओ य मुच्छ सलिलभिन्नो ॥ ३२॥ विहिवसओ पत्तीए, कुलदेवीइ व तस्स धावीए । सो तत्थ । तहा दिट्ठो, गोविय नीओ य नियगेहं ॥ ३३ ॥ पालिज्जतो तीए, अभंगसिणाणभोयणाईहिं । जाओ पुणन्नवतणू, सो छिन्नपसहरुक्खु व्व ॥ ३४ ॥ इत्य य इमो उवणओ, ललियंगो कामभोगमुक्खेसु । जह निच्चमनिचिन्नो, तह जीवो एस
देहीणं ॥ ३५ ॥ जह देवीपरिभोगो, तह सुक्खं विसयसंभवं तस्स । आवायमत्तमहुरं, परिणामे दारुणसरूवं ॥ ३६ ॥ दुग्गंध| कूववासो, गम्भो जणणीइ चावियरसेहिं । जं गम्भपोसणं पुण, तं फेलाहारसंकासं ॥३७॥ जो जलपूरियविट्ठा-कूवाओ चा(वा)रियाइ निक्कासो । सो उवचियगम्भाओ, जोणीए निग्गमो इन्थ ॥ ३८ ॥ जं परिहाउच्छंगे, पायाराओ बहिहिए पडणं । तं गम्भवासओ पुण, पडणं नणु सूइयाभवणे ॥ ३९ ॥ जं मुच्छणं च तस्स य, जलपूरियखाइयातडठियस्स । सा बहिट्ठियस्स मुच्छा, जररुहिरमयाउ कोसाओ ॥ १३४० ॥ जा तस्स धाइया पुण, देहावटुंभकारिणी जाया । सा कम्मपरीणामस्स,
संतई इह मुणेयवा ॥ ४१ ॥ जंबू भणइ पियाओ, तं ललियंग पुणो वि जइ देवी। पविसावइ अंतपुरं, ता किं सो पविसए मनो वा ॥ ४२ ॥ अह जति पियाओ, सो कह पविसेइ मंदबुद्धी वि । तं सुमरंतो दुक्खं, विट्ठाकुवंमि पडणभवं ॥४३॥
ॐॐ

Page Navigation
1 ... 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320