Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library
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४ इत्तं । सेवेमि गंतुमुड्डिय, नणं जइ पक्खिणी होमि ।। ९५ ॥ चिंतइ य चउरवेडी, पासठिया तीइ पडिसरीरं व । नृण रमेइ दिठ्ठी, तरुणे एयम्मि देवीए ॥ ९६ ॥ जपेइ य सा सामिणि ?, तरुणे एयम्मि तुह मणो रमइ । चुज न इमं नयणे, चंदो ना
दए कस्स ॥ ९७ ।। ललिया जंपइ हसिउँ, चउरे ? परचित्तचोरगा तं सि । जीवामि ता जइ इम, मणीग्मं कह वि सेवेमि ॥ ९८ ॥ को एस नभ(रु)त्ति ममं, जणाविय तो करेसि तह कहविः। जह मज्झ देहदाई, उवसामसि मेलिऊण इमं ॥ ९९ ॥ गंतूण य नाऊण य, सा चेडी झत्ति आगया वलिउं । विन्नवइ सामिणीए, पुरओ एगागिणीइ इमं ॥ १३०० ॥ इत्यपुरे वत्थ व्यो, समुद्दपियसत्थवाहतणुजम्मा । देवि ! इमो ललियंगो, नामेण तह सरीरेण ॥१॥ सोहग्गभग्गमयणो, तह चाहत्तरिकलासु निउणमई । तरुणो कुलीणचरिओ, इअ सामिणि ! तुह: मणोठाणे ॥ २॥ नारीसु तुम एगा, गुणरूवमई इमो य पुरिसेसु । ता दुण्डं पि हु सामिणि!, घडेमि जोगं समाइझसु ।। ३॥ इय भणिऊणं देवी ( हत्थी), तीसे हत्थंमि तस्स नियलेहं । पेमंकुराण जलहर-पयसेगनिभं समप्पेइ ॥ ४॥ चेडी वि तक्खणं सा दुईकम्मेसु पंडिया गंतुं । जंपइ तं ललियंगं, सुललियवयणं पयंपती ॥५॥ देवीए सह रमिउं, चाडूहि पयढिऊण ललियंगं । सा अप्पइ तं लेह, तस्स मणप्पीणणनिमित्तं ॥ ६॥ तं दट्टण पु
लडओ, कयंब इव पुप्फिओ स तक्कालं । पेमप्पयासपिसुणं, लेह सो वायए एवं ॥ ७॥ जइया दिट्ठो सि तुम, सुभग ? वBारागीइ मह बयाओ वि । सव्वं पि तुह मयं चिय, ता में अणुगिह मिलिऊण ॥ ८॥ इय वाइऊण लेहं, स भणइ भद्दे ! सु
णेश मह वयणं । करतेउरवासा, सा देवी कत्थ वणिओ हैं ॥९॥ न हि एयं सकिज्जइ, हियए धरि धरिजए अहवा । ता न वइन्जइ वुन, जं निवरमणिं रमिस्से हैं ॥१३१० ॥ जइ कह वि चंदलेहा, तक्किज्जइ फरिसिउं भुवि ठिएहिं । ता धुवम

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