Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library
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हवि कहं कहिउं, नाहं जाणामि इय भणिस्सामि । ता गुत्तिगिहे खिप्पि-स्सामि धुवं का गई मज्झ ॥ १३ ॥ पुत्ती तस्स कु-3 ४मारी, सा तं चिताउरं निरिक्खित्ता । पुच्छइ का तुह चिंता, सो तीसे कारण कहइ ॥ ६४ ॥ पुत्ती भणइ तुम मा, चिंतासं
तावभायणं होसु । तुह वारयमि गंतुं, कह कहिस्सामि अहमेव ॥ ६५ ॥ अह तम्मि दिणे हाउं, सियवत्थे परिहिउंच निवपासे । गंतूण जयासीसं, दाउं निवमाह सुणसु कहं ॥६६॥ निवई वि तत्थ तारिस-निक्खोहत्तेण विम्हिी तीसे । टहरियकन्नो जाओ, मिगु व्ध गी; कहं सोउं ॥ ६७ ॥ सा आरंभइ कहिउँ, नयरे इत्थेव माहणो अस्थि । नामेण नागसम्मो, कण भिक्खाभवणवसजीवो ॥ ५८ ॥ तब्भज्जा सोमसिरी, तक्कुक्खिसमुब्भवा अहं पुत्ती । नागसिरी नामेणं, पत्ता चिट्ठामि तरुणतं ॥६९ ॥ मायापिऊहि इत्तो, दिन्ना चट्टस्स विष्पपुत्तस्स । जं नियसंपइसरिसो, महिलाण वरो इह हवेइ ॥ १२७०।। अह कम्मि वि वीवाहिग-पओयणे अन्नया मह पिऊणि । गाम पत्ताइ ममं, गिहमि एगागिर्णि मुत्त ॥७१ ॥ गामंतरं गया-3 इं, पिऊणि मह जम्मि चेव दियहम्मि । तदिवसं चिय पत्तो, स विप्पचट्टो वि गेहम्मि ॥७२॥ संपइ अणुसारेणं, विणा वि मायापिऊण तस्य तया । हावणजिमावणाई-कओ मए उचियसम्माणो॥७२॥ तो नियगिहसवस्सं, खट्टापत्थरणयं तहा एगे।
सयणाय तस्स संझा--समयम्मि समप्पियं च मए ।। ७४ । हिययम्मि चिंतियं तो, खट्टा चट्टस्स अप्पिया इहि । बहुयबिल3 सप्पबहुले, भूमितले कह सइस्से हैं ।। ७५ ॥ भूसयणाओ भीया, सुनाई तस्स चेव सयणिज्जे । न य को वि ममं नियई,
निसाइनीरंथ तमसाए ।। ७६ ॥ इय चिंतिऊण मुत्ता, तत्थेव हि निविगारचित्तेण । सो पुण ममंगफरिसं, पाविय मयणाउरो जाओ ।। ७७ । लज्जाए खोभेण य, विसयनिरोहाउ तस्स तक्कालं । उप्पन्नमुदरमूलं, मओ य सो तेण रोगेण ॥ ७८॥

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