Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library

View full book text
Previous | Next

Page 310
________________ प्रकरणम् धर्मविधि जंबू पभणइ सो वि हु, अन्नाणवसेण पविसइ कहं पि । सन्माणु त्ति अहं पुण, गब्भे न खिमि अप्पाणं ॥ ४४ ॥ इय अट्टहि ॥१४९॥ * भजाहिं, जंबूपहुणा वि तत्थ अन्नुन्न । विहिपडिसेहकहाओ, कहियाओ सोलस इमाओ ॥ ४५ ॥ फरिसगहत्यिकलेवर वानरहुंगालदाहयसियाले । विज्जाहरसंखधमे, सिलाजऊ दो य थेरीओ॥ ४६ ॥ आसे गामउडसुए, वडवा मासाहस त्ति पक्खी य । तिनिउ मित्ता माहण-सुया य ललियंगए चेव ॥ ४७ ॥ एवं च जंबुपहुणो, विनाउँ सुदिढनिष्णय ताओ। पडि- IX M बोहं पत्ताओ, पियाउ तं खामिउं विति ॥ ४८ ॥ जह नित्थरसि तुमं पहु !, तह नित्थारसु सहेव अम्हे वि । "तसंति मह पाणो, न हि नियकुक्खिभरित्तेण ॥४९॥ अह सिरिजंबूपहुणो, पियराई ससुरबंधवाओ वि । जति तस्स पुरओ. इत्तो ॐ अम्हं पि पव्वज्जा ॥१३५०॥ पभवो वि भणइ बंधव !, पियराणं साहिऊण सिग्धमहं । पबज्जाइ सहाओ, तुज्झ भविस्सामि निभंतं ॥ ५१ ॥ तो पभवं पइ जंपइ, जंबुपहू इय करेसु निविग्छ । मा पडिबंध बंधव ?, बंधुजणाणं करिज्जासु ॥५२॥ इत्तो य विभायाए, विभावरीए महासओ जंबू । संचरइ महिड्ढिर, निक्खमणमई समासज्ज ।। ५३ ।। ण्हाउँ कयंगरागो, स. व्वंगीणे वि परिहए जंबू । रयणमयालंकारे, कप्पो पसु ति कप्पविऊ ॥ ५४ ॥ ततो अणाढिएणं, देवेणं विहियपाडिहेरवओ। नरसहमवाहिणीए, सो सिबिगाए समारुहिओ , ५५ ॥ कासवगुत्तुप्पन्नो, सदेवमणुएहिं संथुणिज्जंतो। दाग सयलजणाणं, A सो कप्पतरुव्व वियरंतो ॥ ५६ ॥ तं सिरिसृहम्मगणहर-पयपउमपवित्तियं वणुद्देस । पत्तो जंबू कुमरो, अमरो इव दिव्वरि डीए ॥ ५७ ॥ दट्टुं सुहम्मसामि, आभरगाई विहीइ दाऊण । उत्तरिओ सिविगाभो, संसाराउ व्व नीरागो ॥ ५८ ॥ अह सिरिमुहम्मपहुणो, पाए भवजलहितारणतरंडे । सो पंचगं पणमिय, कयंजली विन्नवइ एवं ॥ ५९॥ सिवपहसत्याह ! तुम, ॥२४९॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320