Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library

View full book text
Previous | Next

Page 313
________________ HARSE% तीस वरिसाईं, विहिया बाणउई वरिसा--णत स ठावेइ गणहरपए, नो मणपज्जवनाण, कस्स वि परमावही नो य९३॥ नाहारगतणुलद्धी, केसि पि हुनो पुलागळडी वि । कत्थ विनो जिणकप्पो, नारुहणं खवगसेढीए ॥१४॥ नो होही उवरितण, संजमतियगं च कत्थ वि मुणीण । इय रिद्धी अन्ना वि हु, निव ? पच्छा हीणहीणतरा ॥९५॥इय सिरिमुहम्मपहुणो,वयणं सोऊण कोणिओ निवई । तप्पबपउमं नमिर्ड, पुणो वि चंपाइ संपत्तो॥१६॥ तट्ठाणाउ सुहम्मो,जंबूपहु पमुहपरियरसमेओ । बोहंतो भवियजणं, पत्तो सिरिवीरजिणपासे ॥ ९७ ॥ गहिया सुहम्मगुरुणा, दिक्खा पन्नासवरिसमाणेण । तो तीस वरिसाई, विहिया सिरिवीरपयसेवा ॥ ९८ ॥ अह चरमतित्थनाहे, मुक्खगए सिरिमुहुम्म- 2 गणहारी। छउमत्थो तित्थमिम, बारसवरिसाइ पालेइ ॥ ९९॥ अह बाणउई वरिसा--णते संपत्तकेवलनाणे । वरिसाणि अटु विहरइ, बोहंतो भवियसत्तगणं ॥ १४०० ॥ वरिससयाऊ ? जाओ , भय निव्वाणगमणसमयम्मि । ठगवेइ गणहरपए, सिरिजंबुपहुं नियट्ठाणे ॥ १॥ अह अहियजायमहिमो, समत्यमुणिसत्यधुणियपयपउमो । जिणपन्नत्तविहीप, विहुयरओ विहरइ महीए ॥२॥ तत्तो तिव्वतवाओ, निम्महियासेमकम्मसंघाओ।पडिहयसंसयट्ठाणं, सो पावइ केवलन्नाणं ॥३॥ तपयडियलोयाळोओ, संजणियासेसकोसिपमोओ। तइया तिहुयणविइओ, अपुव्वसूरु ब्व सो उइओ॥४॥ सोलस वासाइ गिही, छउमत्थो वीस चरणरयणनिही । चउयालीस जाओ, केवलनाणी सुविक्खाओ ॥ ५॥ पणमासपणदिणाई, सव्वाउं तह असीइ वरिसाइं । पालिय अंते पभवं, नियठाणे ठवइ गुणपभवं ॥ ६॥ तत्तो सयमारुहिउँ, वेभारनगंमि अणसणं विहिउँ । मासियसलेहणय, काउं च गओ स परमपयं ॥७॥ ओसप्पिणीइ अवहो, इमाइ जाओ तओ य सिद्धिपहो । वुच्छिन्ना नीसेसा, भरहे एए चिय विसेसा ॥८॥ मणपरमोहिपुलाए, आहारगखवगउवसमे कप्पे । संजमतियकेवलिसि-ज्झणया जमि E SS

Loading...

Page Navigation
1 ... 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320