Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library
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स
विधि
प्रकरणम्
१४८॥
न्ननरैहिं, अँजिज्जइ रायरमगो वि ॥ ११॥ दासी जंपइ सव्वं, पि दुक्कर नणु सहायरहियाण । तुह पुण अहं सहाया, ता चिंतं सुभग मा कुणसु ॥ १२ ॥ अंतेउरमज्झेणं, मह बुद्धीए अलक्खि भो सुभग ? । ठविउ व्व कुसुममज्झे, संचारिज्जसि - भएण अल .१३ ॥ समयम्मि आहविज्जसु, ममंति सा तेण पिया चेडी। तं अक्खइ गंतूण, देवीइ तदिक्कद्दिययाए ॥१४॥ तस्संगमहचिंता-कलियाए तद्दिणाउ ललियाए । नयरंमि अन्नदियहे, जाओ कोइमहूसवो रम्मो ॥ १५ ॥ चंदकर ज्जलसरवर--जलाइसस्सप्पस्सखित्ताए । बहिभूमीए राया, पत्तो पावद्धिलीलाए ॥१६॥ तइया विजणीभूए, समंतओ रायभवणमग्गंमि । तीए वि चेडियाए, ललिया ललियंगमाहवइ ।। ९७ । अह अंतेउरमेसा, तं देवीए विणोयमुद्दिसिउँ। अहिणवजक्खप्पडिमा--छलेण पुरिस पवेसेइ ॥ १८ ॥ ललिया ललियंगो विय, ताई चिरजायसंगमसुहाई। आलिंगंति परुप्पर-महियं वल्लीविडविणु व ॥ १९॥ अणुमाणाओ एयं, अंतेउररक्खगेहिं विन्नाय । जह परपुरिसपवेसो, जाओ अंतेउरे नृणं ॥ ।। १३२० ॥ पिक्वता वि हु छलिया, वयं ति ते जाव चिंतयंति मणे । ता पावद्धि काउं, समागओ नरवई तत्थ ॥ २१ ॥ ते मग्गिऊण अ छल, नरवइणो विन्नति रहसि इमं । परनरपरेससंका, चिट्ठइ अंतेउरे देव ? ॥ २२ ॥ निस्संचारं चरणे, संठावंतो महीवई तत्तो । अंतेउरस्स मज्झे, पविसइ चोरु व्व एगागी ॥२३ ॥ अह दारनिहियदिट्टी, चेडी दूराउ तं समाय | त । दळूण महीनाह, देविं जाणावर झत्ति ॥ २४ ॥ तो देवी दासी वि हु, तं नरमुप्पाडिउँ विमग्गेण । गिहपुंजय व बाहिं, सिग्यं चिय पक्खिवंति तया ॥ २५॥ अह सो वि भवणपच्छिम-भागठिए असुइकूवए पडिओ । रहिओ य निलीइत्ता, न. त्थेव गुहाइ घूउ व्व ॥२६॥ कूवम्मि तम्मि असुइ-टाणे दुग्गंध अणुभवाकिन्ने । पुवमुहं सुमरंतो, नरगावासे इव ठिओ सो॥२७॥
॥२४८॥

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