Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library

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Page 284
________________ प्रकरणम् धर्मविधि तुम्भे सव्वे वि मज्झ वयणेण । करिरयणरक्षणकए, एयं आधोरणं भणह ॥ ९३१ ॥ लोया भणति कि भो ?, तुममाधो रणधुरीण ? करियणं । इत्तियभूमि पि गर्य, सक्केसि नियत्तिउं कह वि ॥ ९३२ ॥ मिठो भणइ करीसर-मेयं उत्तारयामि खेमेण । जइ अभयं देह अहो, अम्हाणं नरवई सम्मं ॥ ९३३ ॥ राया वि हु लोएण, विनतो. देइ जीवियं तेसिं । मिठो वि हत्थिणं तं, सणियं उत्तारह नगाओ ॥ ९३४ ॥ मुंचंतु मज्झ देसत, राइणा जंपियाइ अह ताई । उत्तरिऊण गयाओ, गयाइ एग दिसि पित्तुं ॥ ९३५ ॥ वञ्चनाई ताई, गार्म रगं गयाइ संझाए । सुन्नेमि देवभवणे, कत्थ वि मुत्ताइ जुत्ताई ॥ ९३६ ।। अह अडरत्तसमए, पत्तो गामाउ तकरो एगो। आरक्खगाण नट्ठो, तम्मि पविट्ठो य देवउले ॥ ९३७ ॥ तं देवकुलं गामाॐ रक्खगपुरिसेहि वेढियं तत्तो.। चोरं पभायसमए, गिहिस्सामु त्ति निण्णइ ॥ ९३८ ॥ इत्थेहि परिसंतो, सम्भूमि तकरो कि सो सणियं । तत्थेव गओ जत्य य, सुत्ताई ताइ चिट्ठति ॥ ९३९ ॥ चोरेग तत्थ मिंठो, फरिसिजतो विचम्गए नेव । - ग्गेइ वज्जलेवु व, संतमुत्तस्स जे निद्दा ॥ ९.० ॥ ईसिपि करप्फुसिया, चोरेण पिया निवस्स पडिबुद्धा । फरिसेण वि अणुरत्ता, तम्मि तओ भणइ की सि तु ॥ ९४१॥ तीए सणियं भणियो, सणियं चोरो वि तं इमं भणइ । आरक्खगाण नहो, इहागओ(पत्तो इह)जीवियत्थीहं ॥९४२॥ सा अणुरागवसेणं, असई चोरं पयंपए भद्द ? । रक्खामि तुमं नृणं, जइ म बंछसि तुमं सुभग ? ॥ ९४३ ॥ चोरो भणइ सुवन्न, संपन्नं मह इमं तह सुगंधि । जे होसि मज्झ भज्जा, देसि तुमं जीवियव्वं च ॥ ९४४ ॥ नवरं पुच्छामि तुम. केण पयारेण देसि मह जीयं । इय अक्खिऊण भद्दे ?, आसाससु में भयाउलियं ॥ ९४५ ॥ ४सा भणइ मुभग? ना(गा)मा-रक्खगपुरिसेसु आगरम तुमं । पणिस्सामि पइमई, एवं हवउ ति सो आह ॥९४६॥ सूरुदए

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