Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library

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Page 297
________________ परमं । जिणदासाभिहसिट्ठी, सुगिहीयगिहिवओ अत्थि ॥ ३४ ॥ पहुभत्तो दृढचित्तो, पमायपरिवजिओ महाबुद्धी। सो चेव तुरगरयणं, एवं परिरक्खिउं खमइ ॥ ३५ ॥ अह जिणदासं राया, आहविर्ड सप्पसायमाइसइ । मह जीवियं व तुमए, रक्खेयव्यो इमो तुरगो ॥ ३६ ॥ सामिय ? तुह आएसो, मज्झ पमाणं ति भणिय जिणदासो । तं नेइ निययगेहे, तुरयं पाइक्कपरियरियं ॥ ३७॥ तो तस्स कए सिट्ठी, सव्वत्तो सुहमवालुयं खिविउं । गंगापुलिणसमाणं, सुहयं कारावर ठाणं ॥ ३८॥ चारेइ तं च तुरयं, सो तीरठिओ सया वि हरियाई । सरसाइ कोमलाई, सव्वंग पुट्ठिजणगाई ॥ ३९ ॥ कोमलभूमिपएसे. कंटयलिट्ठहि वज्जिए सिट्टी । तं चिल्लावइ तुरयं, सुहेण रज्जुमि धरिऊण ॥ ११४० ॥ व्हावेइ तं सयं चिय, सुगंधसलिलेहि एगतत्तेहिं । पुत्तं व नि सिट्ठी, जया जया अप्पणा व्हाइ ॥ ४१ ।। सयमेव समारुहिउँ, तं तुरयं सरवरंमि नेऊण । पाएइ जलं निचं, सिट्ठी बंधइ य ठाणम्मि ॥ ४२ ॥ सरवरगिहतराले, जिणभुवणं आसि अंतरीयं व । भवजलनिहिणो मझे, अक्कमियं तेण जं नेव । ४३ ॥ मा जिणगिहस्स वना, हवउ त्ति मईइ तुरयचडिओ वि । तिपयाहिणीकरेई, तं सो जंतो चलतो, य ॥ ४४ ॥ तह तुरयारूढो बि हु, तत्तविऊ सो भिवंदिय देवे । मा एयस्स पमाओ, होउ ति न मुंचए तुरयं ॥ ४५ ॥ एवं तं जिणदासो, तुरयं तह सिक्खवेइ जह नूणं । सरगिहजिणभवणाणं, विणा न अन्नत्य सो जाइ ॥ ४६ ॥ जह जह जिणदासगिहे, सणियं सणियं स बद्धइ तुरंगो। तह तह नरिंदभवणे, सयमवि वर्द्धति रिडीओ ॥४७॥ तस्स य तुरंगमस्स, प्पभावओ सो निवो पहुत्तेण । नीसेसनरवईणं, जाओ अचिरेण नमणिज्जो ॥४८॥चितंति निवा सव्वे, हरियव्बो कह वि मारियब्बो वा । तुरगो इमस्स एसो, वयं जिया जप्पभावेण ॥ ४९ ॥ तस्स तुरंगस्स तहा, काउमसक्के तेसु निवईसु । एग 9 5 % EOS

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