Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library
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प्रकरणम्
धर्मविधि ॥१४३॥
स्स भूमिवइणो, सचिवो धीगविओ भणइ ॥ ११५० ॥ केणावि उवाएणं, अहं हरिम्सामि तं हयं अहयं । किं दुक्करमुवा15 याणं, न मिई जमुवायसत्तीए ॥५१॥ कुणसु त्ति सयं पहुणो, आइट्ठो धीबलाउ सो सचिवो। मायाइ सावगतं, गहिऊणजगओ वसंतपुरे ॥ ५२ ।। तत्थ जिणमंदिराई, नह सुविहियसाहुणो य वंदित्ता । जिणदासगिहे पत्तो, सो तग्गिहचेइयं नमिउं | ॥ ५३ ॥ अह जिणदामं दटुं, सो सावयवंदणेण वंदित्ता । कबडप्पवंचचउरो, सुसावगत्तं पयासेइ ॥५४॥ अन्मुट्ठिऊण सहसा, जिणदासो तस्स बंदणं दाउं । आसणमप्पिय पुच्छइ, कत्तो साहम्मिओ अतिही ? ॥५५|| संवेगभविओ इव. स भणइ संसारसुहविरत्तो है । मुक्कसयणाणुरागो, तित्थेसु वएमि नियदविणं ॥५६॥ काऊण नित्थजतं, सव्वत्थ वि धम्मबंधव ? तो है। सुगुरूण पायमूले, पडिवन्जिस्सामि पव्वज ५७ ॥ जिणदासो वि पयंपइ, बंधव ? धन्नो सि सागयं तुज्झ । अम्हाण, धम्मबुद्धी, समसीलाणं हवउ अज्ज ॥ ५८ ॥ तत्तो जिणदासेणं, साइम्मियवच्छलेग तक्कालं । गोरविओ अभंगण-उन्वदृणण्टावणाईयं ॥ ५९॥ कच्छुरियाइ केसे, तक्खणपक्खालिए वि मलिणेइ । तस्स सिरे धम्मिल्ल, बंाइ अकयावराह पि ॥११६० ॥ तं चंदणेण चच्चिय, परिहावइ धम्मबंधवं वत्थे । जिणगुरुवंदणकिरियं, विहिणा कारइ य जिणदासो ॥ ६१ ॥ तो तस्स कए कारिय, खणेण दिव्वं व रसवई तत्थ । तं कूडमप्पणा सह, मुंजावइ विविहभुज्जेहिं ॥ ६२ ॥ अह कवडसावएणं, तेणं भुत्तुहिएण दुढेण । सह जिणदासेण सयं, जिणधम्मकहा समारद्धा ॥ ६३ ॥ इत्तो य कोवि सयणो, सयमा | गंतूण भणइ जिणदासं । इज्जासु मज्झ भवणे, कल्ले कल्लाणकज्जम्मि ॥ ६४ ॥ तत्थ य तए अवस्स, रहियध्वं सयलमवि है अहोरत्तं । अन्नत्थ जइ वि न वससि, तहवि मए इत्तियं लभं ॥ ६५ ॥ पडिवज्जिय तन्वयणं, जिणदासो तं विसज्जिलं
॥४३॥

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