Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library

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Page 302
________________ धर्मविधि प्रकरणम् मा साहसिओ हवमु इत्थं ॥ १४॥ को वि नरो नियलोयं, चइउं दुभिक्खदुविखओ अहियं । महया सत्थेण समं, चलिओ देसंतरं गंतुं ॥ १५ ॥ एगार अडवीए, सन्थे आवासियम्मि सो पुरिसो । इंधणतणाइहेर्ड, एगागी वि हु गओ दूरं ॥ १६ ॥ तत्य य एगो पक्खी, तरुगहणे सुत्तवग्धवयणाओ । दंतंतरप्पविढे, मंसं गिव्हिय चडइ रुक्खं ॥ १७ ॥ मा साहसंति पुण पुण, भणि मंसं तहेव गिण्हंतो । सो पक्खी तेणेवं, पुरिसेण सविम्हयं भणिओ ॥ १८ ॥ मा साहसं ति पसि, वग्यमुहाओ य आमिस हरसि । तं मुद्धि सउणि दीससि, सवयणसरिंस न य करैसि ॥१९॥ ता नाह ? लहसुक्खं चइऊण अदिद्वसुक्खवं - छाए । एवं वयाभिलासी, नज्जसि तं साहसखगु च ॥ १२२० ।। जंबू भणेइ भद्दे !, अहं न मुज्झामि तुम्ह वयणेहिं । मुंचामि न नियकज्ज, जाणतो मित्ततिगनायं ॥ २१ ।। नयरम्मि खिइपइट्ठिय-नामे जियसत्तुणो नरिंदस्स । सव्वाहिगारकारी, पु. रोहिओ सोमदत्तु त्ति ॥ २२ ॥ तस्स य एगो मित्तो, जाओ सहमित्तनामगो इट्ठो। खाइमपाणाईमुं, सो मिलिओ चरइ । सव्वत्थ ॥ २३ ॥ बीओ य पव्वमित्त, त्ति जो सया ऊसवेसु पत्तेसु । सम्माणिज्जइ बहुयं, तग्गेहे अन्नया न पुणो ॥ २४ ।। तइओ पणाममित्तु, त्ति तस्स मित्तो सया वि हियजणगो । जह दसर्णमि सो पुण, संभासणमत्त उवयारो ॥ २५ ॥ अह अन्नदिणे कत्थ वि, तस्सेव पुरोहियस्स अवराह । दटुं सहसा कुविओ, निवई तं गहिउमिच्छेइ ॥ २६ ॥ रन्नो तदभिप्पाय, नाऊण पुरोहिओ निसिभरम्मि । सहमित्तमित्तभवणं, एगागी आगओ दीणो ॥ २७ ॥ मित्त ? मह अन्ज रुट्ठो, जसु व्व निवइ त्ति अक्खिउं तस्स । तं भणइ तुज्झ गेहे, गमामि असुई दसं एवं ॥ २८ ॥ जाणिज्जइ मित्तत्तं, आवइकाले उचट्ठिए मित्त ! तामं नियगिहमज्झे, संगोविय कुणसु उपयारं ॥ २९ ॥ तं जंपइ सहमित्तो, मिचीए मित्त निग्गयं अहुणा । ताव च्चिय सा

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