Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library
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नेइ । भणइ य मह देवीए, दिनमिमं गिण्डिह जणा भो ॥ १०४१॥ गोधणदाणासत्त, मुत्तं जक्खं व तं जणो सव्यो । स माणइ भत्तीए. जो देइ स देवया जेण ॥ १०४२ ॥ तह चेत्र लडपसरो, वरिसे बीए वि संखधमगो सो । गंतुं खित्ते निच्चं, संखं वाएइ रतिं पि ॥१०४३ ॥ अन्नदिणे ते चोरा, अन्नगामाउ गोधणं हरि । तक्खित्तस्स अदूरे, तहेव पत्ता निसीहम्मि ॥१०४४ ॥ निसुणंति संखसई, तत्थ चिय तस्स संखधपगस्स । तो सुटठु अवटुंभ, काउं जपंति अन्नुन्नं ॥ १०४५ ॥ भो भा संखस्स रखो, पुरा वि निसुओ इहेब ठाणम्मि | सुम्मइ अहुणा वि इमो, ते य दरा मिंढया ते य॥१०४६॥ सत्ताण रक्खण कए, नियखित्ते खित्तरक्खगो को वि । नूर्ण वायइ संख, घी अम्हे वंचिया पुव्वं ॥ १०४७ ॥ दीवयवडढिकरा इव, अह ते
चोरा घसंति नियहत्थे । वच्छा इव घेणुधणे, उढे पीडंति दसणेहि ॥ १०४८ ॥ लउडे उप्पाडता, सुंडादंडे अरनकरिणु व्व । M अंदोलता सस्से, वसहा इव खित्तमज्झम्मि ॥ १०४९ ॥ ते चोग सव्वत्तो, पहाविया संखसद्दमासज्ज । पिक्खंति य संख
धर्म, खित्ततो उच्चमंचठियं ॥ १०५० ॥ तो पाडंति महीए, मंचं अंदोलिऊण दारूणि । तम्मि पडते सो वि हु, सहसा प-& | डिओ निराधारो ॥ १०५१ ॥ तो तेहि ताडिओ सो, गाढं कणमूढउ व्व लउडे हिं । भुंजाणु व्व खिवेई, अह पंचवि अंगुलीउ | IRI महे ॥१०५२ ॥.गोधणवत्थाईयं, सव्वं उद्दालिऊण ते चोरा । कुवंति खित्तवालं, तं नग्गं खित्तवाल व ॥१०५३ ॥
तत्थेव संखधमग, मुत्तुं चोरा वयंसि नियठाण (णे)। सो गोवेहि पभाए, पुट्ठो किमियं ति तो भणइ ॥१०५४ ॥ संख धमिज्ज नवरं, नाइधमिज्जा न सुंदरं जेण । ज धमणाओ लई, अइधमणाओ गयं तं पि ॥ १०५५ ॥ ता सामिय?
१ वच्छाईयं प्र.

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