Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library

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Page 292
________________ प्रकरणम् मविधि अइयारो, तुज्झ वि काउं न जुज्जइ इत्थ । अम्हे वि किंपि मन्नसु, भा अवगन्नसु उवलकढिण ।। १०५६॥ तो जंपइ ॥१४०॥ जंबुपहू, तं पि पियं अंबुसीयलगिराए । सेलेयवानरो इव, न बंधणे हं पडिस्सामि ॥१०५७ ॥ सुणसु पिए ? विझगिरी, अस्थि अवंझो सया वणसिरीए । वानरजूहाहिवई, तत्थेगो वानरो आसी ॥ १०५८ ॥ कुमरु व विंझगिरिणो, कीलइ वणकदरेसु सिच्छाए । मारइ य जूहजाए, सो अवरे वानरे सव्वे ॥ १०५९ ॥ सह वानरीहि एगो, सुचिय विलसइ महाबलो नन्नो। वित्थारंतो तत्थ य, इत्थीरजस्स सुहलीलं ॥ १०६०॥ अह को वि वानरजुवा, अन्नदिणे तत्थ आगओ एगो। सो वानरीण विंद, तं पिक्खिय जूहमणुलग्गो ॥ १०६१ ॥ कीसे वि वानरीए, चुंबइ चिरपरिचउ व्व सो वयणं । बिल्लदलबीडियाओ, मकी से विमुहम्मि पक्खिवइ ॥ १०६२ ॥ गुंजामयं च हारं, काउं कंठमि देइ कीसे बि । केयइरेणुहि सयं, कीसे वि मुहं च लपिंजरइ ॥ १०६३ ॥ एवं वानरनारीहि, ताहिं सह सो रमेइ निस्संकं । तासि जूहाहिवई, अमुणतो इव भुयबलेण ॥१०६४ ॥ * अह वानरीहि काहि वि, तं वियरिजंतमुहमरोमचयं । काहि वि वीइज्जतं, कदलीदलतालियंटेहि ॥१०६५।। काहि वि नहकु रेहि, कंदूइज्जतदीहलंगूलं । काहि वि कयावयंसं, कोमलनालेहि नलिणीए ॥१०६६ ॥ तुंगगिरिसिंगचडिओ, स जूहनाहोऽह वानरजुवाणं । तं तह दटुं सहसा, कोवंधो धाविओ ज्झत्ति ॥ १०६७ ।। दुराउ वि तज्जतो, चललंगूलेण तज्जणीइव्व । सो जूहबई निहणइ, तं मुट्ठीहिं च (क) लिहिं ॥ १०६८ ॥ लिठ्ठप्पहओ सो वि हु, कविसिंहो उल्ललित्तु सिंहुन्न । कयघोरघुरघुररवो, तस्स वि लग्गो गयस्सेव ।। १०६९ ॥ जुझंति दो वि तत्तो, मल्ला इव चरणपाणिबंधेहिं । तह सत्तुणो वि मिलिया, चिराउ मित्तव्य अन्नुन्नं ॥ १०७० ॥ कुवंति दो वि तत्थ य, खणेण बंध खणेण मुक्खं च । जुझंता ते क

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