Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library
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ता इमो कलंजरी | भाईहि विवत्याहिं, आरुहियन्त्रो पुरो मज्झ ॥ ९१५ ॥ तह कुठनंति पियाओ, ताभ पुरओ निवस्त एते । सा पुण भगइएगा, बीहेभि इमस्स हन्थिस्स ।। ९१६ ॥ नीलुप्पलनालेणं, तं पिंटू हणइ नरवई कुविओ । काऊण कच्छं, भूमीप निर्वाडिया सा वि ॥ ९१७|| अह निच्छद (या) यं रना, बुडीए सा इमा दुरायारा । जा मिंठे आसत्ता, नाया वरेण रयणी ॥ ९९८ ॥ पिक्खड़ य निवो तीसे, पिंट्टै संकलपहार संवलियं । नहअच्छोडण पुच्वं इसियं काऊण इय भणइ ॥ ९१९ ॥ खिल्लसि मत्तगएणं, किलंनहत्थस्स बीइसे पावे । सहसे संकलघायं, उप्पलधारण मुच्छिसि ॥ ९२० ॥ अह जलिरकोवदहणो, गया बेभारपव्त्रए गंतुं । आधारणाधनं तं, आणावइ करिवरारूढं ॥ ९२९ ॥ तन्वोयं तं भज्जं, आरोबाfar Tree पम्प | अह उग्गसासणो सो, निवई इय मिठाइसइ ॥ ९२२ ॥ विसमम्मि गिरिपरसे, चडियं काऊण करिवरं एयं । पाडतंमि पडते, तुम्हाणं निगहो होउ ।। ९२३ || आधोरणो गइंदं, तं आरोविय गिरिस्त सिंगम्मि । उक्खिस एगपाय, धारइ चरणत्तिगेण थिरं ॥ ९२४ ॥ इत्तो य जंपइ जणो, हाहा आणाविहाइणो पसुणो । करिरयणस्स विणासा, न जुज्जए तुझ निवरयण ? ॥ ९२५ ॥ अवगनिय जणवयणं, निवस्स पाडनु गयं ति भणिरस्स । सिक्खाविऊण मिंटो, तं धा रह दोहि पाएहिं ।। ९२६ । हाहा करी अवज्झो, इमु ति लोए पर्यंपिरे रन्नो । मोणद्वियस्स मिठो, धरइ गयं एगचरणेण ॥ ९२७ ॥ अह हाहाकारपरो, भणइ जगो नाह ? एरिसो हत्थी । संपज्जइ पुण्णेहिं, पयाहिणावत्तसंखु व्व ।। ९२८ ॥ अपराधीणत्ताओ, जं रोयइ तँ करेसि देव ? तुमं । नवरं अविवेगभत्रं, भमिही भुवर्णमि तुह अजसो ॥ ९२९ ॥ कज्जाकज्जवियारो, कायव्वो सामिणा सर्वं देव ? । ता अप्पणा वियारि( णि, य, रक्खमु पसिऊण करिरयणं ॥ ९३० ॥ भणइ निवो होऊ इमं,

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