Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library
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पुरिसो न कयावि फरिसिओ अन्नो । गहिलो पुण मह कंठे, लग्गो इय तुज्झ पच्चक्खं ।। ८८४॥ एवं पई च मुत्तुं, अन्ननरो नाह ? जइ मह न लग्गो । ता होसु सुद्धिहेर्ड, सईइ सच्चप्पिो त सि ॥ ८८५॥ चिंतेइ जाव जक्खो, धुत्ताए किं करेमि एयाए । ता तज्जंघामज्ञण, निग्गया दुम्गिला झत्ति ॥ ८८६ ॥ तत्काल चिय लोए, सुद्धा मुद त्ति घोसणपरम्मि । गलयम्मि पुप्फमालं, खिवंति तीसे निवनिउत्ता ।। ८८७ ॥ हरिसियबंधुजणजुया, बज्जिरआउज्जबहिरियदिगंता। कयदेवदिनतोसा, सा पत्ता ससुरभवणम्मि ॥८८८ ॥ ज नेउरगहणाओ, जाओ उत्तारिओ नियकलंको । इय तप्पभिई गोभी, नेउरपंडियं भणइ ॥८८९॥ मुण्डामइपरिभूत्रो, तदिवसाो वि देवदत्तो सो। वारीबध्धु व करी, जाओ चिताइ गयनित ८९० ॥ जोगियं व निदा-रहियं नाऊण नरवई तत्थ । दाउं जहिच्छवित्ति, करेइ अंतेउरारक्ख ॥ ८९१ ॥ अह एगा निवभजा, पुणो पुणो उदिऊण रयणीए । पिक्खइ त पाहरिय, सुवेइ नो वि त्ति विनाउँ ॥ ८९२ ।। सो चिंतइ नियहियए, ४ जाणिज्जइ नेव कारणं किंपि । जं उढिऊण एसा, पुणो पुणो में निरिक्खेइ ॥ ८९३ ॥ मह सुत्तस्स इमा किं, कुणिही इस जाणि स पाहरिभो । नाडेइ कवडनिई, नीहरिया सा वि हु पुणो वि ॥ ८९४ ॥ तो निम्भरनिहाए, त मुत्तं जाणिऊण | हिटमणा । नियडगवक्खाभिमुई, वच्चइ चोरु व्य पच्छन्ना ॥ ८९९ ॥ तत्य य गवक्खहिट्ठा, अग्गलि भो रायवल्लहो हत्यी। अत्थि समत्थकरीसर-सिक्खाविक्खायमइविहवो ॥ ८९६ ॥ तस्स य करिणो मिंडे, रत्ता निच्च पि सा गवक्खाओ । संचारिदारु फलयं, ऊसारिय नीसरेइ बहि ॥ ८९७ ॥ तो सुंडाए गिण्डिय, तेण सया मिठसिक्ख(विख) यगएण। सा मुक्का भूमीए, मिठो त ठुमहरुटो ॥ ८९८ ।। अइकालं काऊणं, किमज्ज पत्ता सि इय भणिय मिठो । तं हथिसिखलाए, निवभज्ज

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