Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library
View full book text
________________
लासीणि । चिट्ठति चक्कवागा, विव अणुरत्ताइ सुबहुँ पि ॥८२०॥ सो तरुणो पब्वाइय मेगं कुलदेवयं व असईणं (असणाई)। जिमिणाईहिं आरा-हिऊण पत्थेइ अनदिणे ॥ ८२१ ॥ अणुरत्ताणन्नुन्नं, मह बहुयाए य देवदत्तस्स । विहिदेवय व्व मुत्ता, घडस तुमं संगम अम्ह ॥ ८२२ ॥ दुई होऊण पुरा, सयमुत्ता सा नईइ मज्जती । मह संगभं पवन्ना, चिट्ठइ ता तुह मुकरमि-3 हि ॥ ८२३ ।। एवं ति मन्निउ सा, सज्जो पव्वाइया परिभमंती । भिक्खाकवडेण गया, बुद्धिमई सुन्नयारगिहे ।। ८२४ ॥ थालीतलयक्खालण-वक्खित्तं देवदत्तवहुयं तं । पन्चाइया निरिक्खइ, तक्खणमेय पर्यपइ य ॥ ८२५ ॥ भद्दे ? तरुणो एगो, मुत्तो इव वम्महो मह मुहेण । पत्थेइ तुम रंतुं, ता अक्खउ कत्थ सो एउ ॥८२६॥ रूवेणं बुद्धीए, वियढिमाए कलाकलावेण । अप्पसमंतं पाविय, जुम्बणतरुणो फलं गिण्डं ॥ ८२७ ॥ जइया नईइ दिट्ठा, मज्जती तद्दिणाउ तुममेव । झायंतो सो न मुणइ, नाम पि हु अन्ननारीण ॥ ८२८ ॥ अह दुग्गिला वि धुत्ता, गोवंती नियमणोगयं भावं । तं पव्वाइयमेवं, तज्जे कडयवयणेहिं ॥ ८२९ ॥ किं पाये ? पीयसुरा, तुममेवं जं ममं पर्यपेसि । अकुलीणारिहमेयं, कि छज्जइ कुलपमूयाण ॥ ८३० ।। आ दुढे जासु बहि, लोवं व तुम अदंसणा होसु । तुह दंसणे वि पावं, का वत्ता भासणंमि पुणो ॥ ८३१ ॥ इय तज्जिऊण तीसे, पच्छावलियाइ दुग्गिला देइ । निम्मलभित्तीए इव, पुट्ठम्मि मसी मलिणहत्थं ॥ ८३२ ॥ तब्भावं अमुणती, गंतु पवाइया विलवखमुहा । तं जपइ दुस्सीलं, पुरिसं इय परुसभणणेण ॥ ८३३ ॥ आ दुट्ट ? तुमं जुहूं, जैपसि एसाणुरागिणी मइ ज । तीइ सइत्तेणाई, मुणीव निभत्थिया तत्थ ॥ ८३४ ॥ तीए कुलंगणाए, मम दुइत्तं मुहागयं मुड ? । भित्तीए चित्तं, चउरो वि हु लिहइ चित्तयरो ॥ ८३५ ॥ गिहकम्मवावडाए, तीए कुवियाइ पिढिदेसे हैं । मसिमलिणेण करेणं, पहया पिक्खेसु मह पुढे

Page Navigation
1 ... 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320