Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library

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Page 269
________________ गिण्हइ मुल्लेण मंसकए ।। ६९२ ॥ पिउणो संवच्छरियं तं महिसं पूइउं सहत्थेण । मारइ सो सत्थाहो, पमोयपुलयं कुरियदेहो ६९३ ॥ तत्तो य तस्स मंसं, दाउँ सयणाण भक्खर सय । उच्छंगट्ठियपुत्तस्स, तस्स वयणे खिवंतो सो ॥ ६९४ ॥ तमाया विणी सा, समागया तत्थ मंसलोभेण । सो वि सयं तप्पुरओ, खिवइ समसाणि अट्ठीणि । ६९५ ।। भक्खेइ पमुइया सा, नियपइजीवस्स ताणि अट्ठीणि । चालती पवणाहय धूम सिहग्गं व नियपुच्छं ॥ ६९६ ॥ एवं पिउजियमंसं, तह भक्खंतस्स सत्थवाइस्स । मासत्रखवणी एगो, भिक्खट्ठा आगओ साहू ॥ ६९७ ॥ तं तत्थ सत्यवाईं, साहू तह पविखण सव्र्व्वपि । नियनाणाइसरणं, जहवत्थं वइयरं मुणइ ॥ ६९८ ॥ चिंता धी संसारो, जं जणयजियस्स भक्खए मंसं । इय अनाणो एसो, उच्छंगत्थं धरइ सत्तुं ॥ ६९९ ॥ तह कुक्कुरी वि एसा, नियपइणो मंसकीकसे एवं । भक्खर हरिसाउलिया, विवरीयं अहह भवचरिर्यं । ७०० ॥ इय जाणिऊण सम्मं, सो साहू तग्गिहाउ नीहरिओ । तप्पृट्ठीए उट्ठिय, सत्थाहो भण `आगंतुं ॥ ७०१ ॥ भयवं ? अगहियभिक्खो, कह मह गेहाउ तं नियत्तो सि । नाहं तुज्झ अभत्तो, नेव अवन्ना कया कावि ॥ ७०२ ॥ साहू आह अहो हं, बिहरेमि न मंसभक्खग गिहम्मि । तेण न गहिया भिक्खा, लाभो पुण तत्थ मह जाओ ॥ ७०३ ॥ स भणइ भयवं ? को तुह, लाभो जाउ ति मज्झवि कहेसु । आह मुणी सुणसु तुमं, किंतु तर नेव रूसियव्वं ॥ ७०४ ॥ एवं ति तेण वुत्ते, साहू साहेइ तस्स बोहकए । महिसयसुनियाईणं, जह जायं तं कहं सव्वं ।। ७०५ ॥ पुच्छर महेसरो अह, भयवं ? को इन्थ पच्चओ मज्झ । भणइ सुणी सुनियमिमं पुव्वनिहिं कमवि पुच्छे || ७०६ ॥ अह आगंतूण गिहे पुव्वभवं साहिऊण सुणियाए । सो पुच्छइ निहिठाणं, उज्झाओ पुव्वपढि व ॥ ७०७ ।। तो जायजाइसरणा, सुणिया गतूण

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