Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library
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तत्तो कुबेरदत्तो, संवेग पाविऊण पवइओ । गुरुपासे तविय तवं, मरिऊण य सुरसिरिं पत्तो ॥ ६६० ॥ वेसा पुण गिहिधम्म, सम्म पडिवज्जिऊण पालेइ । अज्जा वि हु संपत्ता, पुणरेव पवित्तिणीपासे ॥६६१ ॥ एवं जो कम्मेहि, बज्झेइ सयंपि पभव ! का तत्य । मृढाण बंधुबुद्धी, सिप्पाए रुप्पयमइ ब्व ॥ ६६२ ॥ जो मित्त ! सयमबंधू (धो) अन्नेसि बंधमोयगो जो य । स खमासमणो बंधू, नामेणं बंधुणो अन्ने ॥ ६६३ ॥ पभवो पुणो वि पभणइ, कुमर ! तुमं नियपिऊण कुगईए । निवडताणं तायण-कएण सुयमप्पणो जिणसु ॥ ६६४ ॥ पियरो पडंति नरए, नूर्ण संताणवज्जिया संता । ता तं अजायपुत्तो, कह छुट्टसि नियपिउरिणस्स ॥ ६६५ ।। जंपइ जंबूकुमरो, सुयाउ पिउतारणंति वामोहो । सुणसु महेसरदत्तो, सत्थाहो इह उदाहरणं ।।
॥६६६ ।। नयरीइ तामलित्ता--भिहाइ पुर्व पसिद्धसत्थाहो । आसि महेसरदत्तो, जहत्थनामो नियधणेण ॥ ६६७॥ तस्स ४य तणो जाओ, समुद्ददत्तु त्ति नाम विक्खाओ । वित्ते अजायतित्ती, समुद्द इव अत्थपूरम्मि ॥ ६६८ ॥ मायापर्वचबहुला,
बहुला नामेण तस्स माया य । लोभावकरगहिल्ला, मुत्ता माय ब्व अत्थस्स ॥ ६६९ ।। अह सो वि तस्स जणओ, अच्चत्थं अत्थसंचयव्वसणी। मरिऊण समुप्पन्नो, महिसो तत्थेव देसम्मि ॥ ६७० ॥ पइमरणाउ कुणंती, अट्टज्झाणानले पयंगत। माया वि तस्स मरिर्ड, तत्थेव सुणी समुप्पन्ना ॥ ६७१ ॥ घरणी महेसरस्स वि, संजाया गंगिलत्ति नामेण । गउरी महेसरस्स व, उदग्गसोहागपरिकलिया ॥ ६७२ ॥ ससुरयसामूहीणा, गिहम्मि एगागिणी वसंती सा । सच्छंदचारिणित्तं, पत्तारणमि हरिणि व्व ॥ ६७३ ॥ वच्चती (वंचंती) निययपई, सह अन्ननरेण सा रमइ निच्चं । दूरे अप्पवसाणं, नारीण सत्तण जेण ॥६७४ ॥ एगागिणि रहत्थं, सवसं अबलं पलोइउ सहसा । निब्भयइ (य) निस्संकं, पहरइ मयरद्धओ नृणं ॥ ६७५॥ अ.

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