Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library
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SARऊ
साए कालं वइक्कमति ॥ ४३५ ॥ अन्नदिणे सुहसुत्ता, सुयसिंह नियइ धारिणी सुमिणे । पडिबुद्धा तं पइणो, पमोयपुन्ना पसा
हेइ ॥ ४३६ ॥ पभणइ सिट्ठी कंते ?, सव्वं पि हु सिद्धपुत्तारिकहियं । तं सचमेव मन्नसु, सुमिगेगं पच्चो जेण ॥ ४३७ ॥ ४ तइया य विज्जुमाली, देवो चविऊण बंभलोगाओ । उप्पन्नो मुत्तियमणि-रिव धारिणिकुच्छिसिप्पाए ॥ ४३८ ॥ तीसे य देव
पूया-गुरुपयपूयासु दोहलो जाओ । नाउं पइणा तह पू-रिओ य दविणव्वयं काउं ॥ ४३९ ।। अह कमसो वुढिगए, गन्भे संचरइ धारिणी मंदं । गम्भकिलेससमागम-भयभीया सावहाणव्य ॥४४०॥ तत्तो?मदिणसमहिय-मासेहि नवहि(चेव) मुमुहूत्ते । पसवेइ सिट्ठिणी सा, पुतं मुत्तं व तेयनिहिं ॥ ४४१॥ पविसंति सिढिगेहे, अक्खयपुन्नाइँ कणयथालाई। लंबाविज्जति तहा, वंदर(ण)माला उ सुयनम्मे ॥ ४४२ ॥ पयडियहरिसभराई मंगलतूराइँ, तत्थ बज्जति । नचंति बालियाओ, कुंकुमपिंजरियदेहाओ ॥ ४४३ ॥ सिट्ठी संतुट्ठमणो, विसेसओ कुणइ देवगुरुप्यं । अत्थीण देइ दाणं, कारइ सयणाण सम्माण ॥ ४४४ ॥ पुत्तस्स जंबुतरुणो, अभिहाए ठवइ नाम जंबुत्ति । दिवसम्मि दुवालसमे, काऊण महसवं सिट्ठी ॥ ४४५ ॥ तं सुयमुच्छंगत्थं, उल्लावंताई रत्तिदियहपि । हरिसभरवाउलाई, जायाई ताइँ पियराई ॥ ४४६॥ तेसिं च जंबुकुमरो, उच्छगसिरीविभूसणं परमं । वच्चइ कमेण वुढि, पियराण मणोरहो मुत्तो ॥ ४४७ ॥ सयलकलाकुलभवणे, संपत्तो जुब्बणमि सो जाओ । पाणिग्गहणमहसव-जुग्गो अइउग्गसोहग्गो ॥४४८॥ इत्तो य समुद्दप्पिय-समुद्दसागरकुबेरदत्तभिहा । तत्थेव पुरे चउरो, इन्भा चिट्ठति धणयाभा ॥४४९ ॥ तेसिं रइरूवाओ, पियाउ पउमावई कणयमाला । विणयस्सिरी धणयसिरी, नामेहिं जहक्कममिमाओ॥६५०॥ अह कुच्छिमु एयाणं, ताओ देवीउ विज्जुमालिस्स । चविउ उप्पनाओ, पुत्तीउ इमेहिं ना

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