Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library
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ति संदंससरिसतुडेहिं । कीकसविस्संतेहि, जीवाकरिसणपरेहिं व ॥ ५६४ ॥ वडठियमहुकोसाओ. महुबिंदु तम्स भालबट्टमि।४ निवडेइ वारवार, गलंतिया वारिविंदुव्व ॥ ५६५ ॥ बिंदू वि निलाढाओ, पविसइ लुढिऊण तस्स मुहकुहरे । सो तं रसआसाइय, महामुहं मन्नइ मणमि ॥ ५६६ ॥ ता निसुणसु पभव ! तुभं, एयस्स कहाणयस्स परमत्थं । जो पुरितो सो जीवो, जा अडवी भवठिई सा य ॥ ५६७ ॥ जो हत्थी सो मच्चू, जो कवो सो य मणुयभवलाभो । जो अजगरो स नरओ, जे अहिणो ते चउक्कसाया ॥ ५६८ ॥ वडयाओ पुण आऊ य, सियकसिणा मृसगाय जे य दुवे । तो दोवि सुक्ककासणा, पक्खा आउक्खछेयकरा ॥ ५६९ ॥ जाओ पुण मक्खियाओ, वाहीओ ताओ जो य महुविद् । तं मित्त ? विसयमुक्ख, तारजा तम्मि को विउसो ॥ ५७० ॥ विज्जाहरो सुरो वा, जइ तं कूवाउ कोवि उद्धरइ । ता मित्त ? मंदभग्गो, सो पुरिसो इच्छइ नवा किं? ॥ ५७१ ॥ पभवो पभगइ को नाम, मित्त ? दुइसायरम्मि मज्जतो। निच्छइ नरंडतुल्ल, उवयारपरायणं पुरिसं ॥ ५७२ ॥ जंपइ जंबू ता है, वयस्स ! भवसायरे अपारम्मि । मज्जामि किं तु(नु)गणहर-देवे नित्थारगे संते ॥५७७ ॥ अह आह पभवकुमरो, निठुर ? मह कहसु कह तुमं वयसि । पियराई नेहलाई, अणुरताओ य गिहिणीओ ॥ ५७४ ।। जंपइ जंबूकुमारो, बंधव ? को नाम बंधुनिब्बंधो । ज बज्झइ बंधू वि हु, कम्मेहि कुबेरदत्तु व्व ।। ५७५ ।। जह महुरानयरीए, नयरीइप्पमुहगुणकयनिवेसा । वेसा कुबेरसेणा, सेणव्व मणोभवनिवस्स ॥ ५७६ ॥ सा पढमुप्पन्नेणं, गम्भेणं खेइया सजणणीए । विज्जस्स दंसिया खलु, स एव रोगीण जं सरणं ॥ ५७७ ॥ तं नसर्फदाईहिं, विज्जो नाउँ निरामयं भणइ । एयाई नस्थि रोगो, किंतु किलेसे इमो होऊ ॥ ५७८ ॥ उयरम्मि फुडमिमीए सुदुन्वहं जुयलमस्थि उप्पन्न । ता तस्स एस खेओ, सो पुण पसवावही

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