Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library
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*1867864
धर्मविधि | य गिहे गंतु, नियजणणि इय सपहपुव्वं ॥ ६१२ ॥ मह कहसु तुह सुओ है, किमंगजो दक्षिणोवलद्धो वा । पडिवनो।
प्रकरणम् ॥१२॥ अन्नो वा, जं पुत्ता हुंति किल बहुहा ॥ ६१३॥ महया निब्बंधेगं, अह पुच्छंतस्स तस्स मायाए । मंजूसालाभाई, कहिओ
| सव्वो वि संबंधो ॥ ६१४ ॥ जंपइ कुबेरदत्तो, माय ? इमं अहह कह कयमकिच्चं । परिणावियाइ अम्हे, जं नाउं जुगलजाइंपि
॥ ६१५ ॥ सा चेव वरं माया, जीइ सयं पोसणम्मि अखमाए । नियभग्गभायणाई, काउं चत्ताई नइपूरे ॥ ६१६ ॥ मरणा य नइपवाहो, हवइ धुवं नो अकिच्चकरणाय । वरजीवियाउ मरणं, न जीवियं इय अकजाय ॥६१७ ॥ अह तं जंपइ जणणी, सुण अम्हे वच्छ ! अप्पबुद्धीणि । वामोहियाइ तुम्हं, अइअणुरूवेण रूवेण ॥ ६१८ ॥ तुह अणुरूवा कन्ना, वच्छ ? न ४ लडा इमं विणा को वि । एइए अणुरूवो, तुमं विणा न उण को विवरो ॥ ६१९ ॥ अजवि पाणिग्गहणं, एगंचिय वच्छ ? तुम्ह संजायं । नेव पुण पावकम्मं, पुंसित्थीसंभवं अन्नं ।। ६२० ॥ ववहारकर अहुणा, दिसिजत्तं वच्छ ? गंतुकामो सि ।
तं काउं खेमेणं, मह आसीसाइ आगच्छ ॥ ६२१ ॥ तुह आगयस्स सिग्धं, गुरुविच्छड्डेण वच्छ ? वीवाहं । कारिस्सामि फुड-8 8 मई, सद्धि अन्नाइ कनाए ॥ ६२२ ॥ तत्तो कुबेरदत्तो, एवं हवउ त्ति जंपिय जणि । गंतुं कुबेरदत्ताइ, नि M सव्वं ॥ ६२३ ॥ भणइ य पिऊणभवणं, बच्चसु भद्दे ! हसि मह भगिणी । दक्खा विवेगिणी असि, जहोचियं ता करिजः तुम
॥६२४ ॥ पियरेहि वंचियाई, अम्हे किं भगिणि ? संपयं कुणिमो । अहवा न तेसि दोसो, एसो भवियत्वया जमिमा । | ६२५ ॥ पियरो वि जं अवच्चं, चयति तह विकणंति मुल्लेण । कारंति अकिच्चं पि हु, सो दोसो अम्ह कम्माण ॥ ६२६ ॥ एवं कुबेरदत्तो, तं भणि पेसिउंच पिउगेहे । ववहारत्थं चलिओ, महुरानयरीइ पत्तो य ।। ६२७॥ तत्थ य ववहारेणं, अच्चत्थं ॥१२६॥
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