Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library

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Page 252
________________ धर्मविधि लम्पसामी, समोसढो अत्थि वीरजिणसीसी । तव्वंदणाय चलिओ, किं इस्सह मित्त ? तुम्भे वि ॥ ४२१ ॥ चलसु ति भ. प्रकरणम् ॥१२०॥ पणिय सिट्ठी, चलिभो सह तेण पणइणीसहिओ । पत्तो य सुहम्मप्पहु-पयपउमपवित्तियं ठाणं ॥ ४२२ ॥ अह सिरिमुहम्म सामी, दुवालसावत्तवंदणगविहिणा । अभिवंदिउँ निविट्ठो, पुरओ पंजलिउडो सिट्ठी ॥ ४२३ ॥ तनो सुहम्मपहुणो, रसंग धम्मोवएससम्बस्सं । ते बद्ध अंनलोया, पियंति कलिपुडेहिं ॥ ४२४ ॥ समयम्मि सिद्धपुत्तो, पणमिय पुच्छइ मुहम्मगणनाहं । नामेण जीइ जंबु-दोवो सा. केरिसी जंबू ॥ ४२५ ।। अह अक्खइ तं जंबु, वररयणमयागई गणहरिंदो। तस्स पभावं | माणं, सव्वंपि सरूवमवरं च ॥ ४२६ ॥ लहिऊण सपत्थावं, पुच्छे धारिणी वि गणनाई । एयम्मि भवे भयवं ?, मह पुत्तो भ- 12 विस्सइ न वि त्ति ॥ ४२७ ॥ तो भणइ सिहपुनो, भद्दे ? जुज्जइन पुच्छिउं एयं । जं मुणिणो सावज्ज, जाणता वि हुन अक्खति ॥ ४२८ ॥ जिणपय उवएसेणं, निमित्तनाणंमि पडिओ है पि । तुज्झ कहिस्सामि इमं, भद्दे ! निसुणेमु उवउत्ता ॥४२९॥ धीरसहावो मणसा, कारण परक्कपी य ज तुमए । सिल उच्छंगनिविट्ठो, पुट्ठो सिंह व मुणिसिंहो ॥ ४३०॥ तं पिक्खसि सुमिणमी, भहे ? उच्छंगसंठियं सिंहं । तत्तो कुच्छीइ तुमं, सुयसिंहं धरसि अचिरेण ॥ ४३१॥ इय पुचकहियजंबू--तरु छ गुणरयणभायणं तुझ । देवयकयसनिझो, जंबू नामा सुभो होही ॥ ४३२ ॥ तो धारिणी पयंपइ, उद्दिसि जंबूदेवयं मह?। अंबिलसयमद्रुत्तर-महं करिस्सामि होइ इमं ॥ ४३३ ॥ अह सिरिसुहम्माहुणो, नमिय पर धारिणीजुओ सिट्ठी । उत्तरिय गिरिवराओ, तहेव पत्तो नियगिहम्मि ॥ ४३४ ॥ तो रिसहधारिणीओ, पालताई गिहटिइं तत्थ । सिद्धमुहवयणपञ्चा१इहं प्र० २इ. ॥१२०

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