Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library

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Page 251
________________ अह तं पइणो वयणं, पडिवजइ धारिणी तहच्चेव । चितेइ हवउ एवं पि, हिययदुक्खाण वीसरणं ॥४०५ ॥ तत्तो य रिसहदत्तो, तक्खणपगुणीकए रहवरम्मि । वरहंसरोमकोमल-तूलीए तीइ सह चडिओ ॥ ४०६ ॥ संजोइयवरतुरय, महारहं सह| सकिरणरहसरिसं । अहिरूढाई ताई, वेभारगिरि पइ वयंति ॥ ४०७॥ पणइणि ? सेणियरनो, विउलाहयवाहियालिभूमि इयं । दुडरसिंधुरबंधा--बणयक्खंधा इमे य दुमा ।। ४०८ ॥ एयाइँ गोकुलाई, चउदिसि कीलतबालवच्छाई । एए सहयारदुमा, को इलकुलजणियकलसहा ॥ ४०९ ॥ मेहा इव अरहट्टा, एए उच्छू विहियजलवरिसा । तुह नयणसरिसनयणा, इमे य हरिणा पलायंति ॥ ४१०॥ दबदसणेहिं, इय मग्गे धारिणि विणोयंतो । वेभारगिरि पत्तो, सपरियणो सो रिसहदत्तो ॥ ४११॥ अह सहरिसं रहाओ, सिट्ठी जायाइ सह समुत्तरिओ। गिरिवररम्मुज्जाणाइँ, दंसिए नियपणइणीए ॥ ४१२ ॥ तो धारिणी सपणयं, पुच्छंती पहतरूण नामाई। गिरिनिज्झरणजलाई, वारंवारं पियंती य ॥ ४१३ ॥ वीसामं गिण्हंति, सच्छायमुगंध. तरुवरतलेसु । सुहफरिसं कुव्वंती, सीयलकदलीदुमफलेहिं ॥ ४१४ ॥ पमुइज्जनी अंका-रोवियबालासु वानरीसु घणं । आरोविया सुहेणं, गिरिम्मि सा रिसइदत्तेण ॥ ४१५ ॥ अह नत्थ सयं सिद्दि, फलकुमुममणोहरं पणइणीए । गिरिणो उजाणसिरि, अंगुलिअग्गेण दंसेइ ॥ ४१६ ॥ फलभारवामणाओ, इमाउ पिक्खेसु माउलिंगीओ। तह दाडिमीउ संझा-सरिसाओ रत्तकुसुमेहि ॥ ४१७ ॥ एयाओ करणीओ, इमाउ दक्खालयाउ ललियंगि। एए सुगंधकुसुमा, चंपयबउलाइणो तरुणो ।। | ४१८ ॥ इत्यंतरम्मि सिट्ठी, पिक्खइ खेयरमिवागयं तत्थ । चिरदिट्ठसिद्धपुत्तं, जसमित्तं निययबंधु च ॥४१९॥ जंपइय चिरादिट्ठो, साहम्मिय.? कहसु कत्य चलिओ सि । सो वंदिऊण पभणइ, इमम्मि आसन्नउजाणे ॥ ४२० ॥ इत्थ य मुह

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