Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library

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Page 258
________________ प्रकरणम् धर्मविधि ॥१२॥ ॥५१५|| अह तत्य विहिअणुट्टिय, जिणिदकुलदेवयप्पणामाणं । तेसि बहूवराण, करकंकणमोयणं जायं ॥ ५१६॥ तयणंतरंच सिट्ठी, सधारिणीओ पहिमुहकमलो । सयमेव कुणइ पूर्य, जंबुद्दीवाहियसुरस्स ॥५१७ । तत्तो जंबुकुमारो, सव्वालंकारभूसियसरीरो । दइयाहिं ताहिं सहिओ, वासागारंमि संपत्तो ॥५१८ ।। तत्य ठिओ सपिओवि हि, रिसहसुओ बंभचेरचयधारी । जं धीरा अवियारा, संते वि वियारहेउम्मि ॥५१९॥ इत्तो य अत्थि भरहे, विझसमीवम्मि जयपुरं नयरं । तत्थ अवंझपरक्कमकलिओ विझत्ति नरनाहो ॥ ५२० ॥ पुत्ता य तस्स दुनिउ, उन्नयखंधुडरा महाबलिणो । तेसिं पढमो पभवो, पभु ति नामेण बीओ य ॥५२॥ अह विंझनरवरेणं, दिन्नं रज्ज सुयस्स लहुयस्स । संते वि जितणए, पभवे नीसेसगुणपभवे ॥२२॥ तेण य-पराभवेणं, पभवो नयराउ नीहरेऊण । ठाइ कयसनिवेसो, विझायलविसमभूभागे ॥५२३॥ सो वट्टपाडणेहिं, बंदग्गहणेहिं खत्तखणणेहिं । इय विविहचोरियाए, जीवइ नियपरियणसमेओ ५२४॥ अन्नदिणे तस्स चरा, सया वि भमिरा कहंति आगंतुं । जंबुकुमरस्स रिडि, धणयस्स वि जणियअपसिद्धिं ॥ ५२५ ।। वीवाहमंगलकए, इमस्स मिलियं च इन्भजणनिवहं । ते विनवंति पहुणो, मणचितियअत्थखाणि च ॥५२६॥ अह अवसावणितालु-ग्घाडणिविजादुगेण संजुनो पन्नो)। रायगिहे संपत्तो, पभवो गेहम्मि जंबुस्स ५२७ ॥ तो अवसावणियाए, विज्जाइ खणेण विझनिवतणो । जग्गंत सयलजणं, जंबूवज्ज सुयावेइ ॥ ५२८ ॥ सा विजा सिटिसुए, उदग्गपुन्नम्मि पविया नेव । जं सक्को वि न सको, पुन्नधणे आवयं काउं ॥ ५२९ ॥ तो तक्करहिं निद्दा-- यमाणलोयाण तेसि सव्वेसि । सयलमलंकाराई, पारद्धं गिहिउँ सहसा ॥ ५३० ॥ अह सो लुटाकेमुं, लुंटतेसु वि महासओ जंबू । नो कुविओ नावि खुहियो, किंतु इमं भणइ लीलाए ॥५३१॥ भो भो वीससियमिम, निमंतियं सयललोयमिह १२३॥

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