Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library

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Page 241
________________ - A -%D1%AA-%95-%-IES कोउगेणं, वाऊले सो मुणिस्स लहुभाया। पडिउत्तरं पि न भणइ, दूरे वयगहणवत्तावि ॥२४९॥ तत्तो विलक्खचित्तो, पत्तो स मुणी गुरूण पासमि । आलोइऊण अक्खइ, तं सव्वं भाउवुत्तत।२५०॥भवदत्तो भणइ अहो, निठुरयाबंधवस्स लहुयस्स । जं वयधारी अब्भा-गओ य भाया अवन्नाओ ॥२५१॥ किं गुरुभत्तीए वि हु, सेयं वीवाहकोउगं नाम ?। तं चइऊणं जं सो, मन जिबंधु पि अणुबइओ ॥२५२॥ अह तत्थ कोइ साहू, भणेइ भवदत्त ! पंडिओ सि तु । जइ परिणयणप्पगुणं, प. व्वावसि कहवि नियबंधु ॥ २५३ ॥ भवदत्तो भणइ मुणी, मगहादेसम्म जइ गुरू मज्झ । विहरिस्सति तया तुह, कोउगमेयं पि दंसिस्सं । २५४ ॥ अन्नदिणे विहरता, मगहादेसम्मि मूरिणो पत्ता । पवणु ब्व एगठाणे, समणाणं जं ठिई नत्थि ॥ २५५ । वंदित्तु मूरिपाए, भवदत्तो विन्नवेइ इत्तो मे । सयणा आसन्नयरा, तुम्ह अणुन्नाए पिक्खामि ॥२५६ ॥ तो गीयत्यत्ताए, सो एगागी वि गुरुअणुन्नाओ । संपत्तो पियरगिहे, नियबंधवदिक्खणढाए । २५७ तइया सो लहुबंधू, भवदेवो नागदेववरधृयं । वासुगिकुक्खिन्भूयं, परिणीभो नागिलं नाम ॥ २५८ ।। अह भवदत्तं पतं, नाउँ सयणा समा. गयाभिमुहं । तं बंदिऊण तित्थं व, भावभो पज्जुवासंति ॥२५९ ॥ अह भवदत्तो पभणइ, सयणे वीवाहवाउला तुम्मे । अन्नत्याहं विहरेमि, धम्मलाभो भवउ तुम्ह ॥ २६० ॥ तो भवद भत्तीइ, भत्तपाणाइएहिं सुद्धेहिं । पडिलाभयंति विहिणा, कयत्थमप्पाणमन्नता ॥ २६१ ॥ तइया भवदेवो वि हु, पालन्तो नियकुलक्कमायारं । बहुविहसहीहि सहिय, मंडतो आसि नवबहूयं ॥ २६२ ॥ काऊण अंगरागं, धम्मिल्लं बंधिऊण सीसम्मि । तीसे कवोलदेसे, जा वियरइ पत्तवल्लरियं ॥ २६३॥ ता निसुओ भवदत्तो, पत्तो तो भाउदसणुत्तालो । सो अद्धमंडियं पि हु, वयं मुत्तूण संचलिभो ।। २६४ ॥ मा अद्धमंडिय %%%AE% AA-%-कब र

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