Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library

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Page 243
________________ -% %- वो तुमए सह, पत्तो पियमडमंडियं मु । तं होउ ज न वलिओ, तं अम्हाणं पि सल्लेइ ॥ २८१ ॥ झिजइ सा नवहुया, पिययमविरहम्मि चक्कवाइन्छ । सिरिवाणियं व तीसे, नयणजलं नेव वीसमइ ॥ २८२ ॥ अम्ह अणापुच्छाए, भवदेवो कह वि नाइ एगागी । सुमिणे वि घडइ न इम, गो य सो कत्थवि किमेयं ॥ २८३ ।। भवदेवमपिक्खता अम्हे गहिला पणदव्व व्य । अणुगहियव्वा तुमए, कहेसु ते कत्य सो भाया ? ॥२८४॥ अह भाउ भवुत्तारण- कज्जे अलियं पि भणइ भवदेवो । आगयमित्तो वि गो, कत्थवि पत्तो न याणामि ॥ २८५ ॥ कि सो अन्नपहेणं, बलिऊण गिह गउत्ति जपता । सब्वेवि दीणवयणा, वलिया चोरेहि मुसियन्च ।। २८६ ॥ भवदेवो देवयमित्र, तं नववहुयं मणमि झायंतो । भाउअणुयत्तणाए, पञ्चज्ज पालइ ससल्लं ।। २८७ ।। अह भवदत्तो काले, वच्चो अणसणं करेऊग । कालगओ उप्पन्नो, देवो सोहम्मकप्पम्मि ॥ २८८ ॥ तो चिंतइ भवदेवो, पाणपिया मज्झ नागिला नाम । तीसे य वल्लहो हं, जाओ दुण्हं पि ही बिरहो ॥ २८९ ॥ पालियमित्तियकालं, मर वयं भाउणोणुवित्तीए । तम्मि य सग्गगए मह, वरण किं कट्टज गएण ।। २९० ॥ न तहा कयकटेणं, सुदुक्करेणावि पीडिओ अयं । जह तीसे विरहेणं, सा कह होही मह विश्रोए ॥२९१ ॥ जइ अज्ज विजीवंती, सुलोयणं कह वि त लहिस्सामि । तो भोगेसु अतित्तो, अहं.रमिस्सामि सह तीए ॥ २९२ ॥ इय चिंतातंतूहि, वेढन्तो कोलियव्य अप्पाणं । गुरुजणमपुच्छिऊण, भवदेवो झत्ति नीहरिओ।' २९३ ॥ पत्तो तम्मि सुगामे, जाव ठिओबाहिराययणे । ता संपत्ता सह ब-म्भणीइ नारी गहियकुसुमा ॥ २९४ । सो तीइ वेदिओ अह, ते पुच्छइ कहसु मज्झ इह भद्दे ! । | किं अज्जवरटउडो, रेवइभज्जा य जीवंति ॥ २९५ ॥ तीए भणियं मुणिवर !, दा वि विवन्नाई तो मुणी भणइ । तप्पुत्तेण न नान- ब -छ

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