Book Title: Dharm vidhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Shreeprabhsuri
Publisher: Hansvijayji Library

View full book text
Previous | Next

Page 236
________________ धर्माधि ॥ ११२ ॥ हाइ वित्तो ॥ १६८ ॥ पहु ! जोइसिएण पुरा, इय कहियं ज्झ तुह घरे कोवि । रिसिवेसो एइ जुवा, तस्स तुमं दिज्ज नियकनं ॥ १६९ ॥ तो देव ! मज्झ गेहे, पसु व्व ववहारवज्जिओ अज्ज । रिसिवेसो कोइ जुवा, पत्तो कन्ना य से दिन्ना ॥ १७० ॥ तस्स विवाहे सामिय !, मह गेहे गीयतूरनिग्घोसो । तुह दुक्खं च न नायं, ता अवराहं मह खमेसु ।। १७१ || अह रन्ना आइट्ठा, वेसहरे दिट्ठपुव्विणो पुरिसा । कुमरोवलवखणकए, तेहि वि उवलक्खिओ गंतुं ॥ १७२ ॥ तो ते आगंतूणं निवस्स साहंति कुमरआगमणं । राया वि दिट्ठसुस्स मिणउ व्व अहियं गओ हरिसं ॥ १७३ ॥ तत्तो वक्कलचीरी, बहूसमेओ करेणुयारूढो । महया विच्छड्डेणं, नरवइणा नियगिहं नीओ ॥ १७४॥ सयलव्ववहारविऊ, विहिओ रन्ना कमेण सो कुमरो । गोरुवं पि जणेहिं, सिक्खिज्जइ उज्जमपरेहिं ।। १७५ ।। तस्स य रज्जविभागं, दाउँ राया कयत्थमप्पाणं । मन्नतो परिणावइ, बहुआओ रायकन्नाओ ॥ १७६ ॥ अह सो वक्कलचीरी, अखंडसमीहिओ वहूहि जुओ । कीलेइ जहिच्छाए, हंसीहिं रायहंसु व्व ।। १७७ ।। अह अन्नया य रहिओ, वक्कलचीरिस्स मग्गमित्तो सो । तं चोरदिन्नकणयाइ, विकिणतो भमइ नयरे ॥ १७८ ॥ जं जस्स चोरियं तक्करेण तं तं पुणो जणो सम्मं । उबलक्खिऊण आरक्खियाण तं अप्पए रहियं ॥ १७९ ॥ अह आक्खनरेहिं, स रायदारंमि बंधिउं नीओ। दिट्ठो य कुमारेणं, दिट्ठीए करु बुद्धिए || १८० ॥ उवलक्खिऊण तं तह, बद्धं मग्गोवयारिणं मित्तं । लहु मोयावइ कुमरो, उवयारपरा जओ सुयणा ॥ १८१ ॥ दो पुरिसे धर धरा, अहवा दोर्हिपि धारिया धरिणी । उवयारे जस्स मई, उवयरियं जो न पम्हुसइ ॥ १८२ ॥ अह तत्थ सोमचंदो, नियपुत्तविओगदूमिओ भमिओ । रुक्खाउ रुक्खमूलं, नयणजलेहिं व सिंचंतो ॥ १८३ ॥ रन्ना पसन्नचदण पेसिएहि प्रकरणम् ॥ ११२ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320