Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
View full book text
________________
(३१)
जो श्रावक देवद्रव्यका भक्षण करता है तथा मक्षण करते हुए अन्यकी उपेक्षा करता है वह भवांतरमें (बुद्धि) हीन होताहै और पाप कर्मसे लिप्त होता है ॥ ६८ ॥ ___और देखिये श्राद्धदिनकृत्य- माष्यत्रय-कर्मग्रन्थादि अनेक ग्रन्थके कर्ता परम जिनमत प्रभावक श्रीदेवेन्द्रसूरि महाराज अपने बनाये हुए प्रथमकम्र्मग्रन्थम लिखते है कि
उम्मग्गदेसणा मग्गनासणा देवदव्वहरहिं । दसणमोहं जिणमुणि-चेश्यसंघाइपडिणीओ॥५६॥
अर्थ--उन्मार्गकी देशना ( उत्सूत्र भाषण ), मार्गका नाश (धर्मके साधनको विच्छिन्न करना ) और देवद्रव्यका हरण करके जिन मुनि चैत्य मन्दिर ) और साधु साध्वी श्रावकश्राविकादि चतुर्विध संघका, प्रत्यमाक प्राणी दर्शनमोहनीयकर्मको बांधता है ॥५६ ॥ अगर देवय होताही नहीं तो ऐसे उत्तम महात्मा कर्मग्रंथमें कैरो लिखते है कि · देवद्रव्य भक्षण करने. बालोंको दर्शनमोहनीयका बंध होताहै । इससे साबित है कि देवदम्प था, है और होगा. धर्मधुरंधर प्राचीन महात्माओं के कथनपर जैन समाजकोजो निश्चय: है वह बेचरदासजैसे एक सामान्य मनुष्यके कथनपर कदापि नहीं होसकता। इस लिये बेचरदासने व्यर्थ भाषण देते समय इतनाभी विचार नहीं किया कि भाप्य-कर्मग्रन्थ-श्रावकदिनकृत्य धर्मरत्नप्रकरणटीका आदि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
___www.jainelibrary.org