Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa

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Page 40
________________ (३९) उद्यम करे तो त्रिकरण शुद्धि होतीहै ॥ २ ॥ इसलिये संपूर्ण बलसे चारित्रवाले और चारित्र वगैरके सकलसङ्घको उस काममें लग जाना चाहिये क्योंकि वह सबका काम है ।। ३ ॥ तटस्थ-आपने पूर्वाचार्योंके ग्रन्थोंके बहुतही अच्छे प्रमाण दिये हैं उन प्रमाणोंको सुनकर मैं रोमाञ्चित हुवा हूं । परन्तु आजसे लगभग पंद्रहसौ वर्ष पेश्तर चोदहसौ चुम्मालीस ग्रन्थोंके कर्ता परमप्रभावक याकिनीमहत्तरासूनु श्रीमद् हरिभद्रसरि महाराज नाम के आचार्य हुए हैं जिनको श्वेताम्बरशाखानुयायी सबगच्छवाले ( तपोगच्छ, खरतरगच्छ, बड़गच्छ, पार्श्वचंद्रगच्छ, कवलागच्छ आदि सब गच्छवाले ) अत्यन्त आदरपूर्वक मानते हैं इस · देवद्रव्यकी सिद्धिक विषयमै आप इनके जितने प्रमाण सुनाएंगे उतनाही जैनसमाजको विशेष निश्चय होगा, तथा नवाङ्गीटीकाकार श्रीअभयदेवसूरि महाराजके वचनमी प्रायः सभी गच्छवालोंको मान्यहैं अतः उक्त महात्माओंके वचन सुनानेकी कृपा करें ! जिससे सबकी श्रद्धा सुद्ध हो । समालोचक-पूर्वोक्तविशेषणविशिष्ट-श्रीमद् हरिभद्रसूरि महाराज अपने बनाए हुए पूजाप्रकरण नामके चौथे पश्चाशकमें फरमाते हैं कि___ " सिद्धत्ययदहिअक्खय, गोरोयणमायरेहिं जहलाई। कंचणमोत्तियरयणाइदामएहिं च विविहेहिं ॥ १५॥" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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