Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
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( ११७ )
शरीर परनो मोह कदी उतरी शके ? पहेली चोपड़ीमां पास थनार माणस सातमीनी परीक्षा कदी आपी शके ? दानशील तप अने भावना ए प्रमाणे चार उत्तरोत्तर अधिक कोटिना धर्मना आचार छे, जे दान करी शके तेज शील पाली शके. अने तेज गृहस्थ तप पर आवी शके " इत्यादि.
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बात है कि
समालोचक — बिना अधिकार के सूत्र पढ़नेसे बेचरदासकी बुद्धि ऐसी बिगड़ गई है कि एक लोकप्रसिद्ध व्यवहारकोभी समझना मुश्किल हो गया है । क्या बेचरदासका यह कथन कदापि सत्य होसकता है कि जो दान देसके वही शील पालसके, और जो शील पाल सके वही तप कर सके, और जो तप कर सके, और जो तप कर सके वही भावना भासके ! कदापि नहीं । यह तो एक प्रसिद्ध बड़े बड़े धनाढ्यलोक हज़ारों काही नहीं किन्तु लाखों रुपयोंका दान कर सकते हैं परन्तु एक दिनके लिये भी मैथुनका त्याग या एक नवकारसीका पञ्चवखाण करनेमें भी समर्थ नहीं होसकते । इस विषय में बहुत से नरनारी उदाहरणरूप विद्यमान हैं तथापि समस्त जैनजातिमें प्रसिद्ध श्री श्रेणिक तथा कृष्ण महाराजका ही उदाहरण काफी है कि जिन्होंने लाखोंही नहीं बल्कि क्रोडों रूपैये धर्ममें खरच किये हैं परन्तु मैथुनत्याग तथा तपश्चर्या इनसे नहीं बन सकी, बेचरदास के अभिप्रायसे तो इन लोगों में भी शील तथा तपोगुण होना चाहिये था। क्योंकि जो दान देसके वही शील पालसके इत्यादि बातें सत्य होतीं तो पूर्वोक्त पुरुषों में शील तथा तपोगुण
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