Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
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( ११९ )
भैंसे को दुहने जैसा काम किया है। मतलब कि भ्रान्ति सहित पुरुषकी सेमें दुग्धाशाकी प्रवृत्तिमें दूध मिलना तो दूर रहा परन्तु भैंसे की लातों से शिर फुटनेका भी संभव है । इसी तरह बेचरदासको भी इस असत्य कल्पनासे इष्टफलरूप दूध मिलना तो दूर रहा परन्तु दुःखरूप भैंसे की अनेकानेक अनिष्टलातें से एकही जन्मके लिये नहीं किन्तु जन्म जन्म के लिये उसके सिर फुटनेका संभव है, इस लिये बेरदासको उचित है कि, ऐसी शास्त्रविरुद्ध कलानाओंका त्यागकर के ईसी शुद्धश्रद्धाको ग्रहण करले कि दान देनेकी शक्तिके होनेपर या न होने पर भी शील पालनकरने की शक्ति हो सकती है और शीलपालनकी शक्तिके बगैर तपशक्ति हो सकती है । और शील तथा तप शक्ति से रहित भी दान दे सकते हैं । इस श्रद्धा के कायम करनेसे स्वयं नष्ट होने से बच जायें और दूसरोंको भी नष्ट करनेकी बेवकूफीसेभी बचनेका वे चरदासको मार्ग मिल सकता है ।
बेचरदास - " अमुक एक चीज़ करवीज अने अमुक चीज नाज थई शके एवं एकदेशीय फरमान आगमोमां कोई ठेकाणे थी. खुद महावीर प्रभुए पोते क्रियाउद्धार कर्यो हतो. इत्यादि "
समालोचक - वाह ! वाह ! यहां आकर तो बेचरदासने रंग २ में घुसी गई जहालतको बाहर निकालदी ! बेवकुफी कभी कुछ हद है ? बेचरदासने झट कह दिया कि - " अमुक चीज करवीज
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