Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
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(१२७) भटक कर मरनेपरभी निस्तार होना कठिन होजायगा । प्रिय पाठको! यह याद रखनाकि अगर बेचरदासकी अंदर घूसा हुआ मिथ्यात्वरूप भयंकर रोग अगर न निकले तो इससे तुमको ऐसा दूर रहना चाहिये जैसे भयंकर प्लेगसे जीनेकी आशावाले दूर रहते हैं । एक जन्मके जीवनको बचानेके लिये प्लेगिओंसे दूर रहा जाता हैतो फिर भदोभवके जीवनकी रक्षाके लिये बेचरदास नामक भावप्लगीसेभी हमेशह दूर रहना तुह्मारा कर्तव्य है । अब मैं अंतमें इतनाही कहता हूंकि मेरा यह समस्त लेखमात्र लोगोंके तथा बेचरदासके भलेके लिये है. लोगोंका भला तो यूं हैकि कितनेक अज्ञानी लोग बेचरदासके वचनपर विश्वास लाकर उसकी झूठी मनःकल्पनाको सत्य मानकर उसके कथनानुसार प्रवृत्ति करेंतो अपारसंसारसमुद्रमें अनन्त कालतक डूब जावें उनके उस दुःखसे त्रासित होकर यह लेख लिखनेमें आयाहै, और बेचरदासके लिये यह भलाई हैकि अगर वह इस लेखसे कोई रीतिसेभी समझकर परमपूज्य श्रीसङ्घके सामने माफी मांगलेकि-हाय ! मैं बड़ा मूर्ख हूंकि मैंने विना विचार किए जैनधर्मसे विरुद्ध देवद्रव्यादिके विषयमें कथन किया है, और उस कथनको तमस्तरण नामक लेखसे ' एक करेला और दूसरे निम्ब चढ़ा ' जैसा किया है । और मेरे प्राचीनपूर्णपापोदयसे परम प्रभावक आचार्योंकी निन्दा करते समय मैने अपने दिलमें जराभी डर नहीं रक्खा है, इस अधमकर्त्तव्यका मुझको पूर्ण पश्चाताप है, अतः मेरे शिरश्छत्ररूप पवित्र श्रीसंघ इस विषयमें जो मेरी भूल
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