Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa

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Page 126
________________ ( १२५ ) सिर्फ मुझको मिले ! | अस्तु अब मैं इसे जंगलमें से ढूंढ निकालूं कहीं न कहीं से वह छोटा घोड़ा हाथमें आजायगा तो उसे खिला पिला कर मैं बड़ा बनालूंगा, और मेरा मनोरथ पूर्ण हो जायगा । इस विचारसे वह मूर्ख सारे जंगलमें भटकता फिरता है। कोई उसकी वार्ताको सुनकर सत्यस्वरूप पालेता है तो उसे समझाता है कि, अरे मूर्ख तूने किसी धूर्त्तसे ठगा कर पांचसौ रूपयों में आठ आनेकी कीमत वाला कोल्हा ही लिया होगा, और जिसे तुं घोड़ा समझता है वह खरगोश होना चाहिये, नाहक में जङ्गल में भटक २ कर क्यों मरता है इत्यादि अनेक प्रकारसे समझाने पर भी वह उस कोल्हको घोड़ेका अण्डा और खरगोशको घोड़ा ही समझता रहा । और कहनेवालेको असत्य वक्ता मानता रहा । और सारी उमर जंगलमें ही भटक २ कर मर गया । प्रिय पाठकों ! जैसे उस मूढके मनमें शल्य भर गया जिससे कोल्हाको अण्डा और ससेकों घोड़ा मान लिया, और सत्यवादी जनों को असत्यवादी और शाक बेचनेवाले उस असत्यवादी ठगको सत्यवादी समझता रहा । जिससे सारी उमरके लिये दुःखी बन गया. बस इसी तरह जिसके हृदय में मिथ्यात्वशल्य भर गयाहो उसकी भी ऐसीही दश। होती है | अब उसका उपनय बेचरदास के साथ घटानेवालों को उस दुर्भागी जीवके स्थानपर बेचरदासको समझना चाहिए । और प्रथमकी धनाढ्य अवस्थाके स्थानपर आर्यदेश उत्तमकुल पञ्चेन्द्रियकी संपूर्णता, शारीरिक बल, लम्बा आयुः, बुद्धि, वगैरा पदार्थों की For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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